इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि कर्मचारी का निलंबन होने के दौरान स्थानांतरण नहीं किया जा सकता। ऐसा करना मनमाना और उसे कठोर सजा देने की तरह है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने गोरखपुर में तैनात सब इंस्पेक्टर लाल बहादुर शर्मा और देवेंद्र कुमार की याचिका पर उनके अधिवक्ता विजय गौतम को सुनकर दिया है।
इसी के साथ कोर्ट ने दोनों दरोगाओं के तबादले का आदेश रद कर दिया है। एडवोकेट विजय गौतम ने कोर्ट को बताया कि गोरखपुर के पीपीगंज थाने में तैनाती के दौरान रंजना निषाद ने दोनों दरोगाओं के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज कराया, जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया। इससे छह दिन पूर्व उनका स्थानांतरण गैर जिले के लिए हो चुका था। निलंबन आदेश के दो दिन बाद दोनों दरोगाओं को स्थानांतरित जिले के लिए रिलीव कर दिया गया। अधिवक्ता विजय गौतम का कहना था कि याचियों को स्थानांतरण की जानकारी निलंबन के बाद मिली और उन्हें रिलीव भी निलंबित होने के बाद किया गया। ऐसे में स्थानांतरण आदेश अवैध है।
सरकार की ओर से याचिका का प्रतिवाद करते हुए कहा गया कि स्थानांतरण निलंबन से पहले ही हो चुका था इसलिए उसमें कोई अवैधानिकता नहीं है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने साधना गुप्ता व जितेंद्र कुमार के मामलों में पारित आदेशों के हवाले से कहा कि निलंबन के दौरान स्थानांतरण अनुचित व बहुत कड़े दंड की तरह है। याचियों को निलंबन के बाद रिलीव किया गया और तभी उन्हें तबादले का पता भी चला। ऐसे में स्थानांतरण आदेश अवैधानिक होने के कारण कोर्ट ने उसे रद कर दिया।