नई दिल्ली : आखिरकार लंबे समय से अटके भ्रष्टाचार निरोधक कानून में संशोधनों पर मंगलवार को संसद ने मुहर लगा दी। भ्रष्टाचार निवारण संशोधन विधेयक-2018 में रिश्वत को लेकर कई प्रावधान किए गए हैं। मसलन, अब घूस लेने के साथ-साथ घूस देने को भी अपराध बनाया गया है। इतना ही नहीं, उपहार लेना भी अब अपराध माना जाएगा। रिश्वत देने वालों को अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान किया गया है।
भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों का निपटारा अदालतों को अब दो साल में करना होगा। सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जांच की अनुमति भी तीन महीने में देना अनिवार्य हो गया है।
पिछले हफ्ते राज्यसभा से पारित होने के बाद इसे लोकसभा ने भी पारित कर दिया। अब राष्ट्रपति की अनुमति मिलने के बाद जल्द ही नया कानून अमल में आ जाएगा। विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि वर्तमान विधेयक में इस बात का ध्यान रखा गया है कि ईमानदार अधिकारियों के कोई भी अच्छे प्रयास बाधित नहीं हों।
नए कानून में कई नए प्रावधान हैं। अब रिश्वत लेना ही नहीं, बल्कि रिश्वत की उम्मीद रखना या दबाव डालना भी अपराध है। रिश्वत लेने पर सजा का प्रावधान न्यूनतम छह माह कैद से बढ़ाकर तीन साल और अधिकतम तीन साल को बढ़ाकर सात साल कैद कर दिया गया है। आदतन भ्रष्टाचारी की सजा दस साल कैद तक की होगी।’ सेवानिवृत्त सहित सभी सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले सीबीआइ जैसी किसी जांच एजेंसी की अनुमति लेना अनिवार्य।’ अगर किसी कॉरपोरेट घराने का कोई व्यक्ति संस्थान के हित में काम कराने के लिए किसी कर्मचारी को घूस देता है तो उसे भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
अपने लिए या किसी और के लिए अनुचित लाभ लेते पकड़े जाने पर इस तरह की कोई पूर्व अनुमति आवश्यक नहीं होगी।’ अनुचित लाभ लेने की परिभाषा को और विस्तृत किया गया है। नए विधेयक के मुताबिक सिर्फ वैध पारितोषिक को छोड़कर सभी को भ्रष्टाचार की श्रेणी में रखा गया है।
अनुचित लाभ और बदनीयती के चलते स्वीकार किए गए उपहारों को भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में रखा गया है। पहले सभी तरह के उपहारों को इससे अलग रखा गया था।’ सेवानिवृत्त होने के बाद कर्मचारी के पद पर रहने के दौरान हुए निर्णय के संबंध में बिना पूर्व अनुमति के पुलिस कोई जांच नहीं कर सकेगी।