सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि पसंद करने का अधिकार मौलिक अधिकार है और लड़की बालिग है, वह अपनी पसंद से जिसके साथ रहना चाहे रह सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधायिका भी डीवी ऐक्ट में लिवइन रिलेशनशिप को मान्यता देती है।
■ पसंद करने का अधिकार मौलिक अधिकार
■ शादी की उम्र नहीं तो भी साथ रह सकते हैं
■ बालिग को मर्जी से जीने का अधिकार
यह है मामला : राकेश और योगिता (दोनों का बदला हुआ नाम) ने हिन्दू रीति से 12 अप्रैल 2017 को शादी की थी। शादी के वक्त लड़की 19 साल की और लड़का 20 साल का था। इसके बाद दोनों बतौर पति-पत्नी रहने लगे। योगिता के पिता ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दाखिल की और केरल हाई कोर्ट में हैबियस कॉरपस लगाई। हाई कोर्ट में कहा गया कि लड़के की उम्र शादी की नहीं है, जबकि लड़की की है। ऐसे में वे कानूनन पति-पत्नी नहीं है। दोनों शादीशुदा हैं, इसके भी ठोस साक्ष्य नहीं पेश किए गए। इस पर हाई कोर्ट ने योगिता के पिता की अर्जी स्वीकार कर ली और लड़की को पिता की कस्टडी में भेज दिया।
राकेश की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया कि योगिता 19 साल की है। वह जहां चाहे रह सकती है। राकेश 21 साल से कम भी है तो भी वह बालिग है और हिन्दू मैरिज ऐक्ट के तहत यह शादी 'नल' यानी अवैध नहीं है बल्कि 'नल' करार होने योग्य है। ऐसे में हाई कोर्ट का फैसला सही नहीं है।
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि लड़का बालिग है और उसकी उम्र विवाह के लिए तय कानूनी उम्र 21 साल से कम है तो भी वह बालिग लड़की के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह सकता है। इस मामले में लड़के की उम्र 21 साल से कम होने के कारण हाई कोर्ट ने लड़की के पिता की अर्जी मंजूर कर ली थी और लड़की को पिता की कस्टडी में भेज दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने लड़के की अर्जी स्वीकार करते हुए केरल हाई कोर्ट का आदेश खारिज कर दिया। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि लड़की की उम्र 18 साल से ज्यादा है, वह अपनी मर्जी से जहां चाहे रह सकती है। लड़की ने कहा था कि वह अपनी मर्जी से लड़के के साथ रहना चाहती है।