सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और जनजाति कानून (एससी-एसटी एक्ट) पर अपने फैसले में संशोधन करने से इन्कार कर दिया है। बुधवार को केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि संसद भी निर्धारित प्रक्रिया के बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की इजाजत नहीं दे सकती है। अदालत ने सिर्फ निदरेष लोगों के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की सुरक्षा की है।
जस्टिस आदर्श गोयल और यूयू ललित की खंडपीठ ने कहा कि अगर एकतरफा बयानों के आधार पर किसी नागरिक के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी रहे, तो समङिाये कि हम सभ्य समाज में नहीं रह रहे हैं। उल्लेखनीय है कि 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसने कहा था कि गिरफ्तारी से पहले प्रारंभिक जांच होनी चाहिए। इसके अलावा अन्य निर्देश भी दिए गए थे।
खंडपीठ ने कहा कि ऐसे कई फैसले हैं, जिनमें कहा गया है कि अनुच्छेद-21 (जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार) को हर हाल में लागू किया जाना चाहिए। संसद भी इस कानून को खत्म नहीं कर सकती है। हमारा संविधान भी किसी व्यक्ति की बिना कारण गिरफ्तारी की इजाजत नहीं देता है। यदि किसी शिकायत के आधार पर किसी व्यक्ति को जेल भेज दिया जाता है, तो उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है। केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने भी सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून को अदालत नहीं बदल सकती है।
ग्रीष्मावकाश के बाद विस्तृत सुनवाई : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह ग्रीष्मावकाश के बाद मामले की पूरी सुनवाई करेगा और सभी संबंधित पक्षों को विस्तार से सुनेगा। इस बीच, खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस गोयल ग्रीष्मावकाश खत्म होने के चार दिन बाद ही छह जुलाई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। सरकार ने दी है फैसले को चुनौतीकेंद्र सरकार ने एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के फैसले को चुनौती दी है। सरकार ने इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की है