शहरों के बीचोबीच होने वाले विरोध-प्रदर्शनों की वजह से ट्रैफिक के अवरुद्ध हो जाने की समस्या का स्वत: संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार से पूछा है कि इस चिरस्थायी समस्या के समाधान के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए। न्यायालय ने मुख्य सचिव समेत आला अधिकारियों को मामले में प्रतिवादी बनाने का आदेश देते हुए सभी से 10 अप्रैल को जवाब मांगा है।
यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की खंडपीठ ने मीडिया में बीपीएड प्रदर्शनकारियों की वजह से लखनऊ में हुई ट्रैफिक समस्या की खबरों का स्वत: संज्ञान लेते हुए पारित किया। न्यायालय ने कहा कि विरोध प्रदर्शन लोगों की असंतुष्टि जाहिर करने का एक जरिया हो सकता है लेकिन, इसकी वजह आम जनता को परेशानी का सामना करना पड़े तो इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। स्कूली बच्चों, ऑफिस जाने वालों, आवश्यक कार्य से बस-ट्रेन पकड़ने निकले लोगों और मरीजों को ऐसे विरोध प्रदर्शनों की वजह से लगने वाले ट्रैफिक जाम से खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मरीजों को समय से इलाज नहीं मिल पाता और कई बार तो ऐसी स्थितियों में इलाज न मिलने से मरीजों की मौत हो चुकी है। गर्भवतियों को सड़क पर अपने बच्चों को जन्म देना पड़ा है। न्यायालय ने कहा कि हम स्थानीय प्रशासन के इस रवैये से स्तब्ध हैं कि पहले वे ऐसे प्रदर्शनों की इजाजत दे देते हैं। ऐसा लगता है सरकार ने भी सड़क और राजमागोर्ं पर ऐसे प्रदर्शनों को कंट्रोल करने के लिए कुछ भी नहीं किया है। न्यायालय ने कहा कि हमें अधिवक्ताओं द्वारा बताया गया है कि लखनऊ में धरना स्थल के लिए रमाबाई पार्क को चिह्न्ति किया गया है लेकिन प्रदर्शनकारी शहर के बीचोबीच ही प्रदर्शन करते हैं। न्यायालय ने मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह और पुलिस महानिदेशक को प्रतिवादी बनाने का आदेश देते हुए इन सभी से 10 अप्रैल को जवाब मांगा है।