इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी नियम के बगैर सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारी से बकाये की वसूली नहीं की जा सकती। सर्वोच्च न्यायालय के पंजाब राज्य बनाम रफीक मसीह के फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद देयों से कटौती होने पर परिवार प्रभावित होता है। यदि विभाग पर कर्मचारी की देनदारी है तो नियमानुसार सेवाकाल में उसकी वसूली कर ली जानी चाहिए।
यह न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने इलाहाबाद के सुरेंद्र बहादुर सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने प्रभागीय लौंजिग प्रबंधक वन विभाग इलाहाबाद के तीन दिसंबर, 2015 के उस को रद कर दिया है जिसके तहत बिना कानूनी प्रक्रिया के याची के सेवानिवृत्ति परिलाभों से 93067.25 रुपये की कटौती का दिया गया था। कोर्ट ने वन विभाग को दिया है कि वह छह माह के भीतर सात फीसदी ब्याज सहित सेवानिवृत्ति की तारीख से परिलाभों का भुगतान करे। वन विभाग के अधिकारी ने याची की 131 दिन के अवकाश नकदीकरण को स्वीकृत करने के बाद सेवानिवृत्ति के पेंशन, ग्रेच्युटी आदि भुगतान बकाया कटौती के लिए रोक दिया था। याची पर आरोप है कि उसे काम के लिए अग्रिम भुगतान किया गया था और उसने बिल वाउचर व लेजर पेश नहीं किया।
याचिका पर अधिवक्ता त्रिलोकी सिंह ने बहस की। इनका कहना था कि याची 1983 में स्कैलर पद पर नियुक्त हुआ और उसे 2011 में नियमित कर लिया गया। 31 जुलाई, 2015 को सेवानिवृत्ति से पहले उसे दो बार सूचित किया गया कि बकाए की भरपाई दो कर्मियों से कर ली गई है। जबकि याची को यह नहीं बताया गया कि उस पर कितना बकाया है। याची ने विभाग में प्रत्यावेदन दिया, जिस पर कोई न होने पर याचिका दाखिल की क्योंकि उसे सेवानिवृत्ति परिलाभों का भुगतान नहीं किया जा रहा था।’
कर्मचारी के परिलाभों से वसूली का वन विभाग का रद सेवानिवृत्ति के बाद देयों से कटौती पर परिवार होता है प्रभावित : कोर्टवन भिाग ने लगाया था आरोप वन विभाग ने जवाबी हलफनामे में कहा कि याची पर एक लाख 89 हजार 644.90 रुपये का हिसाब न देने का आरोप है जिस पर विभागीय कमेटी गठित हुई। कमेटी ने 93067.25 रुपये की वसूली की संस्तुति की है। याची का कहना था कि उसे नहीं सुना गया। नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया। ऐसा कोई विभागीय नियम नहीं है जिसके तहत सेवानिवृत्ति के बाद कार्यवाही की जाए।