विधि संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के उच्च प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यशैली पर तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि अधिकारी तथ्यों व कानूनी उपबंधों पर विचार किए बिना साइक्लोस्टाइल आदेश से फैसले कर रहे हैं। अधिकारियों में इतना भी शिष्टाचार नहीं है कि मृतक आश्रितों की नियुक्ति अर्जी निरस्त करने से पहले तथ्यों, परिस्थितियों, सुसंगत कानून व निर्णयों पर विचार कर लें।
अफसरों की कार्यशैली पर यह टिप्पणी न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी की कोर्ट ने कन्नौज की कुमारी हिना की याचिका पर की। अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा के यहां याची ने मृतक आश्रित कोटे से नियुक्ति के लिए अर्जी दाखिल की थी। अर्जी चूंकि देर से दाखिल हुई इस आधार पर विभागीय अधिकारी ने उसे निरस्त कर दिया था। जिसे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने याची को नियुक्ति देने से इन्कार करने के आदेश को रद कर दिया है और नये सिरे से आदेश पारित करने का आदेश दिया है।
याचिका पर अधिवक्ता राजेश कुमार सिंह ने बहस की। इनका कहना था कि याची के पिता पूर्व माध्यमिक विद्यालय बाजारकलां नगर क्षेत्र कन्नौज में चपरासी थे। जिनका 11 मई 2009 को निधन हो गया था। इसके बाद 19 नवंबर 2011 को याची के छोटे भाई ताजुल और मां ताहिरा बेगम की दुर्घटना में मौत हो गई। पिता जैनुल हसन की मौत के समय याची 12 साल की थी। बालिग होने पर उसने आश्रित कोटे से नियुक्ति के लिए चार सितंबर 2014 को शिक्षा विभाग में अर्जी दी। कार्यवाही न होने पर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट ने दावे पर निर्णय लेने का निर्देश दिया। याची को सूचित किया गया कि उमेश नागपाल केस के तहत अर्जी देरी से दाखिल होने व तात्कालिक सहायता के उपबंधों के विपरीत होने के कारण अर्जी खारिज हो गई है। इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने 23 जनवरी 2017 के आदेश से शिक्षा निदेशक के 15 फरवरी 2016 के आदेश को रद कर दिया और सचिव बेसिक शिक्षा को दो माह में पुनर्विचार कर निर्णय लेने का निर्देश दिया। सचिव ने भी निदेशक के आदेश के अनुरूप बिना तथ्यों व कानून पर विचार किए साइक्लोस्टाइल आदेश से अर्जी निरस्त कर दी।