नई दिल्ली : अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) कानून में अब न तो तत्काल एफआइआर दर्ज होगी और न ही तत्काल गिरफ्तारी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए यह अहम व्यवस्था दी है। कोर्ट ने कहा है कि एससी-एसटी कानून के तहत प्रताड़ना की शिकायत मिलने पर तत्काल प्राथमिकी दर्ज नहीं होगी बल्कि पहले डीएसपी शिकायत की जांच करेंगे कि मामला फर्जी या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है। इसके साथ ही अभियुक्त की तत्काल गिरफ्तारी भी नहीं होगी।
कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों में सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अथारिटी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी लेनी जरूरी होगी। इसके साथ ही कोर्ट ने अभियुक्त के लिए अग्रिम जमानत का रास्ता भी खोला है। 1इतना ही नहीं किसी भी निदरेष को कानून की प्रताड़ना से बचाने के लिए कोर्ट ने यहां तक कहा है कि इन नियमों का पालन न करने पर पुलिस पर अनुशासनात्मक और न्यायालय की अवमानना की कार्रवाई होगी। हालांकि कोर्ट ने साफ किया है कि उनका यह आदेश आज से लागू होगा यानी पुराने मामलों पर इसका असर नहीं पड़ेगा।
एससी-एसटी (प्रताड़ना निरोधक) कानून में अपराध सं™ोय और गैरजमानती है। अभी तक इस कानून में शिकायत मिलने पर तत्काल एफआइआर दर्ज होती थी और अभियुक्त की गिरफ्तारी भी होती थी। इतना ही नहीं, इस कानून की धारा 18 अभियुक्त को अग्रिम जमानत दिये जाने पर भी रोक लगाती है। कानून के लंबे समय से हो रहे दुरुपयोग को रोकने वाला यह अहम फैसला न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल व न्यायमूर्ति यूयू ललित ने सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि किसी भी जाति और धर्म के निदरेष नागरिक को प्रताड़ित किया जाना संविधान के खिलाफ है।
■ सरकारी कर्मी सक्षम अधिकारी की मंजूरी और अन्य एसएसपी की मंजूरी बाद ही होंगे गिरफ्तार
■ एफआइआर भी तत्काल नहीं दर्ज होगी, डीएसपी पहले करेंगे शिकायत की जांचकिसी भी जाति और धर्म के निदरेष नागरिक को प्रताड़ित किया जाना संविधान के खिलाफ है। कोर्ट को हर हाल में संविधान लागू करना चाहिए। कानून जातिगत नफरत बढ़ाने वाला नहीं होना चाहिए।’ -सुप्रीम कोर्टकोर्ट ने कहा है कि अभियुक्त की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। सरकारी कर्मचारी को नियुक्ति करने वाली अथारिटी की लिखित मंजूरी के बगैर गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। और अन्य लोगों को जिले के एसएसपी की लिखित मंजूरी पर ही गिरफ्तार किया जाएगा।
गिरफ्तारी की मंजूरी देते समय अधिकारी कारण दर्ज करेगा और वे कारण अभियुक्त और संबंधित अदालत को भी बताए जाएंगे। गिरफ्तारी के बाद अभियुक्त की पेशी के समय मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी के लिए बताए गए कारणों पर विचार करने के बाद ये तय करेगा कि आगे हिरासत में भेजने की जरूरत है कि नहीं।