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Saturday, February 24, 2018

प्रदेश सरकार को हाईकोर्ट की लताड़, ध्वनि प्रदूषण पर लगाम लगाने में असफल रहने लाउडस्पीकर पर लाल नीली बत्ती की तरह प्रतिबंध लगाने को कहा

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने योगी सरकार को प्रदेश में ध्वनि प्रदूषण पर लगाम लगाने में असफल रहने पर कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि यदि वह ऐसा कोई मैकेनिज्म नहीं ईजाद कर पाती जिससे कि ध्वनि प्रदूषण को रोका जा सके तो क्यों नहीं वह लाउडस्पीकर के आम उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देती जैसा कि लाल नीली बत्ती पर लगाया गया है। कोर्ट ने चार जनवरी को सरकार की ओर से धार्मिक स्थलों व शादी समारोह आदि जलसों में लाउडस्पीकरों के उपयोग के लिए पूर्व अनुमति लेने संबधी जारी दिशानिर्देशों को मात्र छलावा करार दिया और कहा कि आज तो लगता है कि स्थिति और भी बदतर हो गई है और लोग रात दिन बिना कानून के डर के लाउडस्पीकर बजा रहे हैं। 




जस्टिस विक्रम नाथ व जस्टिस अब्दुल मोईन की बेंच ने प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार को आड़े हाथों लेते हुए उनको नसीहत दी कि केवल सरकारी आदेश जारी करने से बात नहीं बनती है उसे धरातल पर उतारना पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि 20 दिसंबर, 2017 को उसने बिना सरकारी अनुमति लाउडस्पीकरों के बजाने पर रोक सुनिश्चित करने को कहा था तो सरकार ने बजाय कोर्ट के आदेश की मंशा समङो सभी लाउडस्पीकरों को अनुमति दे डाली। कोर्ट का कहना था कि केवल लाउडस्पीकरों को अनुमति देने भर से कानून की पूर्ति नही होती अपितु सरकार को यह देखना था कि लाउडस्पीकरों को बजाने की अनुमति देते समय यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उनकी आवाज इतनी तीव्र न हो जिससे कि दूसरे नागरिक को कष्ट हो। 




दरअसल स्थानीय वकील मोतीलाल यादव ने एक जनहित याचिका दायर कर प्रदेश में विभिन्न धार्मिक स्थलों और अन्य समारोहों में लाउडस्पीकरों के उपयेाग से होने वाले ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए बनाए गए नियमों का पालन कराने की मांग की थी। कोर्ट ने 20 दिसंबर, 2017 को अपने विस्तृत आदेश में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार निर्देश दिए हैं और नियमावली भी बनाई गई है परंतु फिर भी प्रदेश सरकार ध्वनि प्रदूषण रेाकने के लिए कारगर कदम नही उठा रही है। कोर्ट ने सरकार से कुछ सवाल पूछते हुए उसे ध्वनि प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए कई निर्देश दिए थे। 




कोर्ट के आदेश पर उपस्थित प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने बताया कि सरकार ने आदेश का पालन करने के लिए चार जनवरी को गाइडलाइंस जारी की थी। जिस पर कोर्ट का कहना था कि उन गाइडलाइंस के जारी करने से क्या ध्वनि प्रदूषण रुक गया? कोर्ट ने उनसे पूछा कि ध्वनि प्रदूषण नापने के लिए सरकार ने क्या मैकेनिज्म तय किया है। प्रमुख सचिव ने कहा कि सरकार ध्वनि प्रदूषण मापने के लिए मशीने खरीदने की सोच रही है। तो इस पर कोर्ट के पूछने पर याची ने कहा कि बेहतर हो कि जो व्यक्ति लाउडस्पीकर चलाने की अनुमति लेना चाहता है वह ऐसी मशीन भी खरीदे जिससे अनुमति से अधिक आवाज में लाउडस्पीकर न बजाया जा सके और यदि ऐसा नहीं हो पाता तो बेहतर है कि सरकार ने जैसे लाल नीली बत्ती पर प्रतिबंध लगाने के लिए मोटर व्हीकल अधिनियम में परिवर्तन किया था वैसे ही पर्यावरण प्रदूषण अधिनियम में उचित संशोधन कर लाउडस्पीकरों के ही प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दे। 




इस पर कोर्ट ने कहा कि कानून में संशोधन करना सरकार को काम है जिसके लिए वह निर्देश जारी नही कर सकता है। हालांकि कोर्ट ने सरकार को स्पष्ट किया कि इस पर विचार किया जाए और सरकार ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए गंभीर प्रयास करे। कोर्ट ने अगली सुनवाई 12 मार्च को नियत करते हुए प्रमुख सचिव गृह व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरपर्सन केा व्यक्तिगत रूप से तलब किया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव की ओर से दाखिल हलफनामा से नाखुशी जाहिर करते हुए उन्हें बेहतर हलफनामा दाखिल करने का आदेश भी दिया है।


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