नई दिल्ली : विशेष विवाह अधिनियम के तहत दूसरे धर्म के पुरुष से शादी करने पर महिला का धर्म पति वाला स्वत: नहीं हो जाता। शादी के बाद महिला की व्यक्तिगत पहचान और उसका धर्म तब तक बना रहता है जब तक वह अपना धर्म पर्वितन न कर ले। यह टिप्पणी गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने हंिदूू पुरुष से शादी करने वाली पारसी महिला के धर्म परिवर्तन पर हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई के दौरान की। इसके साथ ही कोर्ट ने बलसाड पारसी अंजुमन से पूछा है कि क्या वह याची को पिता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने की इजाजत दे सकते हैं। कोर्ट मामले पर 14 दिसंबर को फिर सुनवाई करेगा।
इस मामले में विशेष विवाह अधिनियम के तहत हंिदूू से शादी करने वाली पारसी महिला गुलरुख एम. गुप्ता ने अपने मूल धर्म पारसी की मान्यता के मुताबिक पिता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने का अधिकार मांगा है। उन्होंने गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि दूसरे धर्म के पुरुष से शादी करने के बाद महिला का धर्म पुरुष के धर्म में स्वत: परिवर्तित हो जाता है। हाई कोर्ट ने प्रथागत कानून को सही ठहराया था।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ के समक्ष याची की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह ने हाई कोर्ट के आदेश का विरोध किया। उन्होंने कहा कि उनकी मुवक्किल ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत हंिदूू पुरुष से शादी की थी। उसने अपना धर्म नहीं छोड़ा था। विशेष विवाह अधिनियम बगैर धर्म परिवर्तन के दूसरे धर्म में शादी की इजाजत देता है। ऐसे में उसका शादी के बाद स्वत: धर्म परिवर्तन कैसे हो जाएगा। उन्होंने इसे महिलाओं के साथ भेदभाव बताया। उन्होंने कहा कि पुरुष का धर्म दूसरे धर्म की स्त्री से शादी करने से नहीं बदलता तो फिर स्त्री का कैसे बदल सकता है?
शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि धर्म को बहुत ज्यादा सख्त नहीं होना चाहिए, इससे उसमें कम लोग जुड़ते हैं। सुब्रमण्यम ने निर्देश लेकर सूचित करने के लिए कोर्ट से कुछ समय मांगा। शीर्ष अदालत ने अनुरोध स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई 14 दिसंबर तक के लिए टाल दी।