■ केंद्र द्वारा गठित समिति दिसंबर में इस मामले में मिले आवेदनों पर अपना फैसला देगी
■ उप्र व उत्तराखंड के कर्मचारियों से 30 नवंबर तक कैडर बदलने के लिए आवेदन मांगे गए
उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के करीब 500 अधिकारियों और कर्मचारियों को अपना राज्य कैडर बदलने का एक और अंतिम मौका मिलेगा। केंद्र द्वारा बनाई गए एक समिति इसी दिसंबर में इस मामले में मिले आवेदनों पर अपना फैसला देगी। यह कमेटी राज्य गठन यानी वर्ष 2000 से दोनों राज्यों के बीच अनिर्णित मुद्दों पर भी फैसला ले सकती है। बता दें कि उत्तराखंड के गठन के वक्त काम चलाने के लिए उत्तर प्रदेश से कुछ कर्मचरियों व अफसरों के स्टाफ को उत्तराखंड भेजा गया था। लेकिन इनमें से बहुत से लोगों ने दोबारा उप्र जाने की इच्छा जताई थी और अर्जियां दे रखी हैं।
इसी तरह उप्र में रह गए कई कर्मचारी भी उत्तराखंड आने के इच्छुक हैं। केंद्र सरकार ने उत्तराखंड और उप्र के बीच लंबित मामलों को सुलझाने के लिए एक समिति गठित की हुई है। माना जा रहा है कि यह समिति अंतिम बार दिसंबर में बैठेगी जिसके बाद वह खत्म कर दी जाएगी। दोनों राज्यों के कर्मचारियों को अपना कैडर बदलने की अर्जी देने को कहा गया है और कहा गया है कि वह 30 नवंबर तक अर्जी दें दें उसके बाद उनकी अर्जी स्वीकार नहीं की जाएगी। शासन के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक केंद्र सरकार कार्मिक आवंटन के मामले को सुलझाने के बाद केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा गठित इस समिति को खत्म करना चाहती है।
इसीलिए दोनों राज्यों के कर्मचारियों से कहा गया है कि वह अपना कैडर बदलने के लिए आवेदन दे दें। बता दें कि नौ नवंबर 2000 को उप्र के पहाड़ी जिलों को काटकर नए उत्तराखंड का गठन हुआ था। तब से दोनों राज्यों के बीच संसाधनों, कार्मिकों व परिसंपत्तियों का विवाद चला आ रहा है। वर्तमान में उत्तराखंड व उप्र दोनों में भाजपा की सरकारें गठित होने के बाद से माना जा रहा है कि यह विवाद सुलझाने का सबसे मुफीद समय है। इस सिलसिले में दोनों राज्यों के अधिकारी व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व योगी आदित्यनाथ की आपसी वार्ता भी हो चुकी है। दोनों चूंकि पौड़ी जिले के मूल निवासी हैं। दोनों की बीते 10 अप्रैल को इस मुद्दे पर मुलाकात भी हुई थी। इसके पहले दो फरवरी 2015 को दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों की मुलाकात के बाद से मामला आगे नहीं बढ़ सका था।