नई दिल्ली : सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के मामले में बुधवार को नया मोड़ आ गया। दो जजों की पीठ से मामला सीधे संविधान पीठ को भेजे जाने पर कोर्ट में सवाल उठा। अब पांच जजों की पीठ पहले यह तय करेगी कि एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए पिछड़ेपन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व होने के आंकड़े जुटाने का आदेश देने वाले संविधान पीठ के एम. नागराज मामले में दिये गए फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है कि नहीं। 11 साल पुराने फैसले पर पुनर्विचार के लिए चार जनवरी को हो सकती है।
■ अब पहले तय होगाकि पिछले फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं
■ एम नागराज मामले में पिछड़ेपन का आंकड़ा जुटाने का हुआ था आदेश
अभी पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की ओर से मामले को संविधान पीठ को भेजे जाने पर सवाल खड़ा हुआ था। तब जजों के नाम पर घूस लेने के मामले में याचिका दायर होने पर उठे थे प्रश्न। बुधवार को प्रोन्नति में आरक्षण को लेकर भी फिर से वही सवाल उठे। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने गत मंगलवार को जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आर भानुमति के मामला संविधान पीठ को भेजे जाने के आदेश पर यह निर्णय लिया कि पहले पांच जजों की पीठ यह तय करेगी कि एम नागराज के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है कि नहीं।
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उससे पहले आरक्षण विरोधियों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील शांति भूषण और मुकुल रोहतगी ने कहा कि एम नागराज के फैसले पर पुनर्विचार की मांग 2016 में दो जजों की पीठ ठुकरा चुकी है। आरक्षण विरोधियों की ओर से बहस करने वाले राजीव धवन और परिमल कुमार ने कहा कि एम नागराज के फैसले के आधार पर छह फैसले आ चुके हैं। यूपी पावर कारपोरेशन के केस में उत्तर प्रदेश में तो कानून रद होने के बाद प्रोन्नत कर्मचारी वापस पुराने पद पर लौटाए जा चुके हैं। अब अगर दोबारा केस खुला तो उन सब मामलों में क्या होगा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब दो जजों की पीठ सुरेश गौतम के केस में एम नागराज के फैसले पर पुनर्विचार की मांग ठुकरा चुकी है तो फिर अब दो जज के असहमत होने पर मामला सीधे संविधान पीठ को कैसे भेज सकते हैं।