इलाहाबाद : पुलिस महकमे में मृतक आश्रित कोटे से नौकरी पाने की आस लगाए बैठे लोगों में हाईकोर्ट ने उम्मीद की एक नई किरण पैदा की है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जानकारी मांगी है कि एक जनवरी 2003 से अब तक मुठभेड़ में शहीद, अराजक तत्वों के हाथों मृत या कार्य संपादन के दौरान कितने पुलिस अधिकारियों की मौत हुई। कोर्ट ने पूछा है कि ऐसे पुलिस कर्मियों के आश्रितों को मुख्यमंत्री राहत कोष से दी गई सहायता और उनके आश्रितों को दी गई नौकरी की क्या स्थिति है।
कोर्ट ने गृह विभाग के संयुक्त सचिव के उस हलफनामे को खारिज कर दिया जिसमें सही वस्तुस्थिति न बताकर गोलमोल तरीके से जानकारी दी गई थी। यह आदेश न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा ने अंतरिक्ष सिंह व कई अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। याचिका पर अगली सुनवाई पांच अक्टूबर को होगी। मामले के अनुसार पुलिस अधिकारियों की 10 साल में विभिन्न कारणों से हुई मौत व उनके आश्रितों को नौकरी देने को लेकर 31 जुलाई 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने विस्तृत आख्या मांगी थी।
सरकार ने इस आदेश के खिलाफ दो जजों की खंडपीठ में अपील की थी, लेकिन वहां भी कोई राहत नहीं मिली। पुलिस विभाग में सेवाकाल में मृत पुलिस कर्मियों के आश्रितों को नौकरी व मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से भेदभाव कर दी गई सहायता राशि को लेकर याचिका में मुद्दा उठाया गया है। कोर्ट ने भी इस मुद्दे को गंभीर मानते हुए सरकार से विस्तृत आख्या मांगी है।