चंडीगढ़: जो संतानें माता-पिता का उत्पीड़न करती हैं, उन पर रहम नहीं किया जा सकता। ऐसी संतानों को घर से निकाल देना ही उचित है। चंडीगढ़ के उपायुक्त ने याची और उसके परिवार को घर से निकालने का जो आदेश दिया है, वह न तो अनैतिक है और न ही गैरकानूनी। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक दंपती की याचिका इस टिप्पणी के साथ खारिज कर दी।
याची ने हाई कोर्ट में चंडीगढ़ के उपायुक्त के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें याची को घर खाली करने के आदेश दिए गए थे। याची की मां ने उपायुक्त के पास पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत अर्जी दी थी। बुजुर्ग का कहना था कि बेटा उस पर अत्याचार करता है। इसलिए सेक्टर 45 में उसका जो मकान है, उसे बेटे व बहू से खाली कराया जाए। उपायुक्त ने 1 जून को बेटे अशोक कुमार को 15 दिन के भीतर मकान खाली करने के आदेश दिए।
पीठ ने याची को फटकार लगाते हुए कहा ‘आपको शर्म नहीं आती, अपनी बुजुर्ग मां का अपमान करते हुए। क्या यही दिन देखने के लिए माता-पिता अपना तन-पेट काटकर बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बनाते हैं? माता-पिता बच्चों को आर्थिक रूप से मजबूत करते है, ताकि वह समाज में सम्मान हासिल कर सकें। यदि वही बच्चे बड़े होकर मां बाप का अपमान करें, उनका उत्पीड़न करें, उनकी जिंदगी नरक बना दें तो हाई कोर्ट आंखें नहीं बंद रख सकता। ऐसी संतानें किसी भी तरह के रहम की हकदार नहीं हैं। याची की 72 वर्षीय विधवा मां, जो जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर हैं, इस समय वह शांति से रहें, इसलिए जरूरी है कि ऐसी संतान उनसे दूर ही रहे।’ अशोक व उसकी पत्नी और तीन बच्चों की तरफ से दायर याचिका के मुताबिक उपायुक्त को उनकी मां की अर्जी सुनने का अधिकार नहीं था।