⚫ मुख्यमंत्री से मिलेगा प्रतिनिधि मण्डल
⚫ कर्मचारियों को आंदोलन के लिए विवश कर रही सरकार
राज्य सरकार ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए राजकीय सेवकों को मात्र 50 वर्ष की उम्र में ही सेवानिवृत्ति का फरमान जारी कर दिया है। इसे लेकर राज्यकर्मचारियों में भारी नाराजगी है। उन्होंने इस फरमान के खिलाफ सड़क पर उतरने का फैसला ले लिया है। इस मुद्दे को लेकर राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी, समन्वयक भूपेश अवस्थी, महामंत्री शिवबरन सिंह यादव और वरिष्ठ उपाध्यक्ष यदुवीर सिंह ने बैठक की। पत्रकारों को बताया कि प्रदेश के मुख्य सचिव ने 50 वर्षीय राजकीय सेवकों के बारे में जो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति और उन्हें सेवानिवृत्त करने सम्बंधी आदेश जारी किया वह अपने राज्य कर्मिकों के प्रति अविश्वास और अक्षम बताने वाला आदेश हैं।
उन्होंने कहा कि 1953 के शासनादेश के आधार पर 60 वर्ष की सेवा और सेवा में आने की अवधि इसी आधार पर 27 वर्ष तय की गई थी। आज जबकि औसतन आयु 70 वर्ष हो गई है तो सेवा में आने की अवधि को बढ़ाकर 40 वर्ष कर दिया गया है। अब जो तथ्य मुख्य सचिव के आदेश पर सामने आएंगे उनमें राज्य कर्मिकों की सेवा अवधि मात्र 10 वर्ष ही बचेगी। ऐसे में राजकीय सेवा में आने वाला का क्या भविष्य होगा। क्या वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाहन कर पाएगा ? उन्होंने यह भी बताया कि राजकीय सेवा में वर्तमान स्थिति बड़ी भयावह है। जिन अनुपात में जनसंख्या एवं काम बढ़ा उनके विपरीत 1972 के आधार पर स्वीकृत पदो के सापेक्ष लगभग हर विभाग में 40 प्रतिशत पद खाली है।
आम जनता से जुड़े विभागों की हालत और भी खराब है। ऐसे में मुख्य सचिव का यह आदेश सरकार और जनता के साथ खुला धोखा है। ऐसा करने से अक्षम एवं अयोग्य के नाम पर कर्मचारियों का उत्पीड़न और शोषण तो होगा ही साथ ही कर्मचारियों के अभाव में विकास कार्य प्रभावित होने के साथ जनता के काम भी रूकेगे। कर्मचारी नेताओं ने कहा कि सरकार के इस औचित्य विहीन आदेश का राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद विरोध करेगी और अगर कर्मचारियों का आदेश के नाम पर अनावश्यक उत्पीड़न हुआ तो सड़क पर उतरेगी।
परिषद का प्रतिनिधि मण्डल इस मामले में राज्य सरकार से मुलाकात करेगा। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद इस औचित्य विहिन आदेश के माध्यम से कर्मचारियों का उत्पीड़न बर्दाशत नही करेगी जरूरत पड़ने पर सड़क पर उतरेगी।
लखनऊ। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रांतीय पदाधिकारियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक सुरेश रावत की अध्यक्षता में हुई। परिषद के महामंत्री अतुल मिश्र ने बताया कि बैठक का मुख्य एजेंडा मुख्य सचिव की ओर से 50 वर्ष पूर्ण कर चुके कर्मचारियों की स्क्रीनिंग कराकर अक्षम हुए कर्मियों को तीन माह की नोटिस देकर सेवानिवृत्त कर दिये जाने के निर्णय पर नाराजगी जतायी गई। कर्मचारी नेताओं ने कहा कि वर्तमान सरकार का रवैया कर्मचारियों के साथ अत्यंत खेदजनक है। जबकि कर्मचारियों को सरकार से काफी आशाएं थीं। वो निराशा में बदल गयी हैं और इस तरह के आदेश से स्पष्ट होता है कि सरकार कर्मचारियों को कमजोर मानकर आंदोलन करने के लिए विवश कर रही है।
सरकार के गठन हुए 100 दिन के ऊपर हो गया है लेकिन नुकसान के अलावा सरकार ने कुछ नही किया । सरकार गठन के बाद सातवें वेतन आयोग का एरियर 2017 के बजाए 2018 में देने का आदेश कर दिया। डी ए के एरियर का भुगतान अभी तक नही हुआ। नियमित नियुक्तियों पर रोक लगा दी गयी। छठे वेतन आयोग की विसंगतियों की रिपोर्ट तैयार होकर दो माह से रखी है जिसपे मुख्यमंत्री ने समय नही दिया। यह सब स्पष्ट कर रहा है कि सरकार की नीतियां कर्मियों के लिए हित में नही। कर्मचारी नेताओं ने चेताया कि यदि इसको रोक नही गया तो बड़े आंदोलन की घोषणा करने में विलंब नही करेगी ।