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Sunday, May 7, 2017

मानदंडों को पूरा करने पर ही सर्टिफिकेट का लाभ, ओबीसी के आधार पर किसी को तय तारीख तक सर्टिफिकेट जमा करने से छूट नहीं

9:02 AM



विसं, इलाहाबाद : ओबीसी सर्टिफिकेट मामले में फुलकोर्ट ने अपने फैसले में हाईकोर्ट के उस खंडपीठ के निर्णय को सही माना जिसने अरविंद कुमार यादव के केस में कहा था कि विज्ञापन में निर्धारित शर्तो को मानने को सभी पक्ष बाध्य हैं। इस फैसले में तीनों जजों ने यह भी कहा है कि केंद्र व राज्य सरकार की नौकरियों के लिए जारी ओबीसी सर्टिफिकेट्स में भले ही कोई फर्क न हो, परंतु यदि कोई अभ्यर्थी राज्य सरकार के नौकरी में फार्म भरता है तो उसे राज्य द्वारा निर्धारित ओबीसी सर्टिफिकेट के मानदंडों को पूरा करना होगा, तभी उसे सर्टिफिकेट का लाभ मिलेगा।
तीन जजों की पूर्णपीठ में मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले, न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता व न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने यह फैसला गौरव शर्मा व कई अन्य की याचिकाओं को तय करते हुए दिया। तीन जजों के सामने यह मामला तब आया जब हाईकोर्ट की दो अलग-अलग खंडपीठों में इस बात को लेकर मतभिन्नता थी कि विज्ञापन में तय तारीख पर ओबीसी सर्टिफिकेट न देने पर बाद क्या उसे स्वीकार किया जा सकता है? एक खंडपीठ का कहना था कि तय तारीख के बाद सर्टिफिकेट स्वीकार नहीं किया जा सकता, जबकि वही दूसरी खंडपीठ का तर्क था कि तय तारीख के बाद भी यदि कोई सर्टिफिकेट देता है तो वह स्वीकार किया जा सकता है। 
दूसरे जज का कहना था कि यदि कोई ओबीसी है तो वह जन्म से है इससे फर्क नहीं पड़ता कि उसने सर्टिफिकेट तय तारीख के बाद जमा किया। दो जजों के बीच इस मामले में मतभिन्नता के चलते यह प्रकरण तीन जजों के सामने अधिकृत फैसला देने के लिए संदर्भित था। पूर्णपीठ के तीनों जजों ने सरकार से इस पर पक्ष रखने को कहा था।
सरकार की ओर से पूर्व मुख्य स्थाई अधिवक्ता रमेश उपाध्याय व स्थाई अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने कोर्ट के समक्ष तर्क रखते हुए कहा था कि तय सीमा के अंदर जाति प्रमाणपत्र देने के पीछे मंशा यह होती है कि अभ्यर्थियों का फार्म स्क्रीनिंग होकर चयन की प्रक्रिया आगे बढ़े। यदि तय सीमा के बाद भी जाति प्रमाणपत्रों को स्वीकार किया जाना जारी रहेगा तो कोई भी भर्ती कभी पूरी नहीं हो सकती। उनका कहना था कि कहीं न कहीं तो एक तारीख सर्टिफिकेट को जमा करने की तय करनी होगी, वर्ना कोई चयन प्रक्रिया पूरी ही नहीं हो सकती। वहीं याचियों की तरफ से कई वकीलों विजय गौतम, सीमांत सिंह, हिमांशु पांडेय, मनीषा चतुर्वेदी आदि ने पक्ष रखा। इन वकीलों का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने रामकुमार गिजरोया के केस में कहा है कि जाति जन्म से ही तय हो जाती है इस नाते यदि सर्टिफिकेट तय तारीख तारीख जमा नहीं हो सका तो परीक्षा परिणाम आने से पहले स्वीकार किया जा सकता है। बहस थी कि फार्म में जाति का जिक्र है, परंतु निर्धारित फार्मेट में ओबीसी सर्टिफिकेट न होने के कारण ओबीसी को सामान्य में मान लेना गलत है। तीनों जजों ने अपने फैसले में तय किया कि ओबीसी के आधार पर किसी को तय तारीख तक सर्टिफिकेट जमा करने से छूट नहीं मिल सकती।
मालूम हो कि यह मामला पुलिस विभाग में कंप्यूटर आपरेटर पदों पर भर्ती का था। इसमें अभ्यर्थियों ने आवेदन करते समय ओबीसी होना ऑनलाइन फार्म में बताया था, परंतु मांगी गई निर्धारित फार्मेट में उन्होंने ओबीसी सर्टिफिकेट तय तारीख तक जमा नहीं किया था। जिस कारण उन्हें विज्ञापन की शर्तो के मुताबिक सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी के रूप में मान लिया गया था।

साभार : दैनिक जागरण
 
 

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