मांगें ना मानीं तो 23 मई को हड़ताल
'मांगों पर
कन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट इंप्लॉइज ऐंड वर्कर्स के वाइस प्रेजिडेंट अशोक कनौजिया कहते हैं कि हमारी भत्तों समेत अन्य मांगों को सरकार जल्द पूरा करे। हमने सरकार को इसके लिए 22 मई तक का समय दिया है। अगर सरकार ने तब तक हमारी मांगें नहीं मानीं, तो हम 23 मई को वित्त मंत्री के कार्यालय के सामने प्रदर्शन करेंगे और इसके बाद हड़ताल की जाएगी।
पे-कमिशन की सैलरी संबंधी सारी सिफारिशें 1 जनवरी-2016 से लागू हो गई हैं। 7वें पे-कमिशन ने एचआरए के मामले में 8, 16 और 24 प्रतिशत की सिफारिश की थी, जिसे केंद्रीय कर्मचारियों ने लेने से इनकार कर दिया। तब सरकार ने लवासा कमिटी गठित की जिससे कि भत्तों पर नए सिरे से विचार किया जा सके। कर्मचारी नेता गोपाल मिश्रा का कहना है कि सरकार हर मामले में टाल-मटोल कर रही है। सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए मिनिमम बेसिक सैलरी 18,000 रुपये तय की है। हमने इसे 26,000 रुपये करने की मांग की थी।
केंद्रीय कर्मचारियों की मांग : 10, 20 और 30 फीसदी हो हाउस रेंट अलाउंस, जो 1 जनवरी 2016 से लागू हो
केंद्रीय कर्मचारियों के भत्तों पर गठित लवासा कमिटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है, लेकिन इस पर अंतिम फैसला लेना और इसे लागू करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। केंद्रीय कर्मचारियों के संघ 'नैशनल जॉइंट काउंसिल ऑफ ऐक्शन' के संयोजक शिव गोपाल मिश्रा ने एनबीटी से कहा कि हमें कम से कम 10, 20 और 30 फीसदी हाउस रेंट अलाउंस ( एचआरए) चाहिए। इससे कम हमें मंजूर नहीं।
हमारी दूसरी मांग है कि एचआरए की नई दरें, नई बेसिक सैलरी के साथ 1 जनवरी 2016 से लागू की जाएं और इसका एरियर केंद्रीय कर्मचारियों को दिया जाए। अभी तक एचआरए पुरानी बेसिक सैलरी पर मिल रहा है। सरकार एचआरए की नई दरों को नई बेसिक सैलरी पर 1 अप्रैल-2017 से लागू करना चाहती है, जबकि 7वें पे कमिशन की सैलरी से संबंधित सिफारिशें 1 जनवरी 2016 से लागू हो चुकी हैं। जब हमें नई बेसिक सैलरी के हिसाब से सैलरी 1 जनवरी 2016 से मिल रही है, तो एचआरए की नई दरें भी नई बेसिक सैलरी के हिसाब से 1 जनवरी 2016 से मिलनी चाहिए। अगर सरकार ने इन दोनों मांगों को नहीं माना, तो फिर विरोध का बिगुल फूंका जाएगा।
मिश्रा ने कहा कि लवासा कमिटी की रिपोर्ट अब इंपावर कमिटी के पास जाएगी, जिसका अध्यक्ष कैबिनेट सेक्रेटरी होता है। हम जल्द ही कैबिनेट सेक्रेटरी से बात करेंगे। उन्हें अपनी मांगों के बारे में बताएंगे। फिर भी सरकार ने हमारी बातें नहीं मानीं, तो हमारे पास आंदोलन के अलावा कोई और चारा नहीं होगा।