नई दिल्ली : सांसदों को पेंशन और पूर्व सांसदों और उनके जीवनसाथी को जीवनभर के लिए रेल यात्र व अन्य सुविधाएं दिए जाने के कानून को चुनौती देने वाली पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, लोकसभा व राज्यसभा महासचिव को नोटिस जारी किया है।
⚫ इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को दी गई है चुनौती
⚫ संविधान के अनुच्छेद 106 में सिर्फ वेतन और भत्ताें की बात कही गई है
न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर की पीठ ने गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी की पर सुनवाई के बाद बुधवार को ये नोटिस जारी किये। कोर्ट ने अटार्नी जनरल को भी नोटिस किया है। लोक प्रहरी संस्था ने अपने महासचिव एसएन शुक्ला के जरिए विशेष अनुमति दाखिल कर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने ऐसी जनहित को खारिज कर दिया था।
बुधवार को कर्ता की ओर से बहस करते हुए वकील कामिनी जायसवाल ने कहा कि संविधान सांसदों को पेंशन का प्रावधान नहीं करता है। संविधान के अनुच्छेद 106 में सिर्फ वेतन और भत्ताें की बात कही गई है। इसके अलावा संविधान में सिर्फ सदस्यों के लिए वेतन भत्ते की बात की गई है। उसमें पूर्व सदस्यों की बात नहीं कही गई है। कामिनी ने कहा कि पहले कानून में व्यवस्था थी कि चार साल तक संसद सदस्य रहने के बाद ही पेंशन मिलेगी लेकिन बाद में कानून संशोधित कर ये शर्त भी हटा दी गई। अब तो यह हो गया है कि अगर कोई व्यक्ति एक दिन के लिए भी संसद सदस्य होता है तो उसे आजीवन पेंशन मिलेगी और उसके मरने के बाद जीवनसाथी या आश्रित को जीवन भर पेंशन मिलेगी। में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के सिटिंग जज तक सेवाकाल के दौरान अपने जीवनसाथी को सरकारी दौरे पर मुफ्त में विमान या ट्रेन से यात्र नहीं करा सकते जबकि एक पूर्व सांसद साल के 365 दिन असीमित बार एक साथी के साथ रेल की द्वितीय श्रेणी में यात्र कर सकता है।
हालांकि मामले में बहस के दौरान पीठ के न्यायाधीश चेलमेश्वर ने टिप्पणी में कहा कि उन्होंने वो समय भी देखा है जबकि लंबे समय तक सांसद रहे बाद में कंगाली में मरे। वैसे बाद में कोर्ट इस पहलू पर विचार करने को राजी हो गया कि सांसदों को पेंशन और अन्य सुविधाएं देने का नियम तर्कसंगत आधार पर होना चाहिए। संस्था की में सांसदों को पेंशन देने पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि राज्यपाल तक को पेंशन नहीं मिलती है।