लखनऊ : विशेषज्ञ संस्थानों में गंभीर बीमारियों का कैशलेस इलाज हासिल करने की राज्य कर्मचारियों की बहुप्रतीक्षित मांग एक बार फिर सरकारी फाइलों में उलझ गई है। पांच साल पूरे कर रही राज्य सरकार ने पहली मई से कर्मचारियों को यह सुविधा मुहैया कराने का वादा किया था।
कर्मचारियों का मानना है कि सरकार के जाने से इसमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि सरकार अपना काम कर चुकी है। उनकी शिकायत है कि सरकार के इस आदेश के पालन में अब विभागाध्यक्ष दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के महामंत्री अतुल मिश्र ने बताया कि इस बाबत मुख्य सचिव के साथ बैठक में सहमति बनने के बाद काफी समय बीतने पर भी परिणाम नजर नहीं आ रहा है।
कर्मचारियों को मई से कैशलेस इलाज की सुविधा दिए जाने का शासनादेश तो जारी कर दिया गया, लेकिन इसके बाद न तो हेल्थ कार्ड बनने का काम आगे बढ़ा और न ही डेटा फीडिंग शुरू हो पाई है। परिषद का मानना है कि विभागाध्यक्षों द्वारा रुचि न लिए जाने से अब तक का परिणाम शून्य है। इसी तरह फार्मेसी, एलटी व ऑप्टोमेटिस्ट सहित अन्य संवर्गो की छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को सातवें वेतन आयोग के प्रथम प्रतिवेदन में समाप्त करते हुए सातवें वेतन आयोग का लाभ देने को लेकर भी मुख्य सचिव के साथ बैठक में सहमति बनी थी, लेकिन इसमें भी कुछ नहीं हुआ।
फील्ड कर्मचारियों को मोटरसाइकिल भत्ता और विनियमित कर्मचारियों को पुरानी अर्हकारी सेवा जोड़कर पेंशन का लाभ देने के लिए मुख्य सचिव ने प्रमुख सचिव वित्त की अध्यक्षता में कमेटी का गठन कर प्रस्ताव उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था, लेकिन इस दिशा में भी बात आगे नहीं बढ़ी है। इसे लेकर कर्मचारियों की नाराजगी देखते हुए परिषद ने इसी महीने के अंत में कार्यकारिणी बैठक बुलाई है। बैठक में इन मांगों को लेकर आंदोलन की रणनीति तैयार की जाएगी।