इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि वित्तीय संस्थाओं (बैंकों) को लोन की वसूली का पूरा अधिकार है, किंतु उन्हें प्रॉपर्टी डीलर की तरह कानून के विपरीत मनमानी कार्यवाही करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि लोन वसूली प्रक्रिया के तहत बाध्यकारी उपबंधों का पालन न करने पर पूरी कार्यवाही अवैध हो जाएगी। इसी के साथ कोर्ट ने वाराणसी, महमूरगंज पंजाब नेशनल बैंक द्वारा लोन वसूली के तहत फुलवारी गांव के याची के बंधक मकान को जानकी देवी को काफी कम कीमत में बेचने की कार्यवाही को अवैध करार दिया है।
कोर्ट ने बैंक को आदेश दिया है कि वह क्रेता जानकी देवी से ली गई मकान की कीमत आठ लाख 10 हजार 351 रुपये 10 फीसदी ब्याज के साथ वापस करे। साथ ही याची के बकाया लोन की गणना करे और चार हफ्ते में बैंक द्वारा मांगी गई राशि याची जमा करे। कोर्ट ने कहा है कि कानून के खिलाफ कार्यवाही करने पर बैंक को वसूली चार्ज व विधिक खर्चे पाने का हक नहीं है। यदि याची भुगतान नहीं करता तो वैधानिक प्रक्रिया के तहत वसूली की जा सकती है।
बैंक को मकान बेचने से पहले एक माह की नोटिस देना अनिवार्य था, किंतु बैंक ने यह नोटिस नियमानुसार नहीं दी। यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने अशोक कुमार की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची ने मकान बनाने के लिए 10 लाख लोन लिया था। किश्तें भुगतान न करने पर बैंक ने बंधक जमीन व मकान कब्जे में लेकर बेच दिया। इसके लिए वैधानिक नोटिस नहीं दी। नौ लाख 458 रुपये बकाया थे। आठ लाख दस हजार में ही मकान बेच डाला, जबकि उसकी मार्केट कीमत 22 लाख 65 हजार 754 रुपये है। याची का कहना है कि बैंक ने मूल्यांकन किए बगैर बेईमानी से कम कीमत में मकान व जमीन बेच दिया। सरफेसी एक्ट के तहत एक माह की नोटिस देना अनिवार्य है। बैंक ने 19 नवंबर, 2011 को नोटिस दी और 18 दिसंबर, 2011 को मकान बेच दिया। एक माह की नोटिस नहीं दी।