लखनऊ : शासनादेशों की भाषा को कठिन, क्लिष्ट और द्विअर्थी ठहराते हुए राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने शासन से कार्यशाला आयोजित कर उन कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने की मांग उठाई है, जिन पर शासनादेश के अनुसार वेतन निर्धारण का जिम्मा है। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि वेतन निर्धारण में गलती के कारण सेवानिवृत्ति के समय या उसके बाद रिकवरी की नौबत आ जाती है। कई बार इसमें सेवानिवृत्त कर्मचारी के साथ ही अनजाने में गलती कर बैठे वेतन निर्धारण करने वाले लिपिक को भी इसका खमियाजा भुगताना पड़ जाता है।
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी ने कहा कि हर 10 वर्ष बाद केंद्र सरकार जब वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करती है, तब राज्य सरकार भी संवर्गो के अनुसार टुकड़ों में आदेश जारी करती है। इस काम में जो कर्मचारी शामिल होते हैं, उनके लिए भी यह हर साल का नियमित काम नहीं होता, इसलिए गड़बड़ी होने की गुंजाइश बढ़ जाती है। परिषद अध्यक्ष ने ऐसी गड़बड़ियां रोकने के लिए हर विभाग और हर संवर्ग के वेतन निर्धारण में लगे कर्मचारियों की कार्यशाला आयोजित कर उन्हें सूक्ष्म प्रशिक्षण दिए जाने की मांग वित्त विभाग से की है।
परिषद ने प्रमुख सचिव वित्त को भेजे पत्र में कहा है कि प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग 20 से 25 हजार कर्मचारी सेवानिवृत्त होते हैं, लेकिन जब उनका हिसाब होता है तो कई बार उनकी रिकवरी तथा कटौती की नौबत आ जाती है, क्योंकि शासनादेश का अपने हिसाब से अर्थ लगाकर वेतन निर्धारण करने वाला कर्मचारी संबंधित कर्मचारी को प्रतिमाह 10 से 15 रुपये तो कभी 100 से 150 रुपये अधिक का भुगतान करा देता है, लेकिन जब पेंशन तैयार होती है तो यह रकम अतिरिक्त मानी जाती है और सेवानिवृत्ति तक यह रकम बढ़ कर 50 से 60 हजार रुपये तक पहुंच जाती है।
⚫ सुप्रीम कोर्ट ने भी गणना को गलत ठहराया
सिंचाई विभाग में अधीक्षण अभियंता बीके मौर्य को छठे वेतनमान में प्रदेश सरकार ने 7600 रुपये का ग्रेड पे निर्धारित किया, लेकिन मौर्य व अन्य अधीक्षण अभियंताओं के हिसाब से उनका ग्रेड पे 8700 रुपये होना चाहिए था। शासन ने उनकी बात नहीं मानी तो मौर्य न्यायालय चले गए। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने मौर्य की गणना को सही माना, लेकिन फिर भी शासन ने सिर्फ मौर्य को इस बढ़े हुए वेतनमान का लाभ दिया।