लखनऊ : सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल को लेकर गठित समीक्षा समिति के सामने कर्मचारी संगठनों के तो तीन सौ से अधिक प्रतिवेदन आए लेकिन जनता ने इससे मुंह मोड़ रखा है। समिति ने जनता से भी सुझाव मांगे थे, लेकिन इसकी पहल सिर्फ दो लोगों ने की है। समीक्षा समिति ने अब विभिन्न सरकारी विभागों से अलग-अलग विमर्श का दौर किया है।
केंद्र सरकार द्वारा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू किए जाने के बाद प्रदेश सरकार ने भी इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था। इसके साथ ही सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी गोपबंधु पटनायक की अध्यक्षता में समीक्षा समिति भी गठित कर दी गई है। इस समीक्षा समिति को 15 नवंबर तक प्रारंभिक रिपोर्ट देनी है। समिति पिछले दो माह से यह समिति सातवें वेतन आयोग के संबंध में लोगों के प्रतिवेदन स्वीकार कर रही है। समिति ने विभिन्न कर्मचारी संगठनों के अलावा आम जनता से भी वेतन आयोग के संबंध में राय मांगी थी। इसके लिए एक ई-मेल पता भी जारी किया गया था। समिति के अध्यक्ष गोपबंधु पटनायक का कहना है कि वेतन आयोग की सिफारिशों का सीधा लाभ भले ही कर्मचारियों को मिलता हो, किंतु आम जनता इससे हर हाल में प्रभावित होती है। इसीलिए आम जनता से राय मांगी गई थी किन्तु अब तक तो जनता ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों की ओर से मुंह मोड़ रखा है।
समिति के समक्ष आम जनता की ओर से सिर्फ दो प्रतिवेदन आए हैं। इस दौरान राज्य कर्मचारियों से जुड़े 150 से अधिक संगठनों के तीन सौ से अधिक प्रतिवेदन भी समिति को प्राप्त हुए हैं। इनमें पांचवें व छठे वेतन आयोग से जुड़ी वेतन विसंगतियों से लेकर सातवें वेतन आयोग से जुड़ी आपत्तियां तक शामिल हैं। समिति ने इन सभी पर विचार की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वित्त विभाग से दो बार इस मसले पर बैठक हो चुकी है।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने की स्थिति में प्रदेश के बजटीय ढांचे पर पड़ने वाले असर पर भी चर्चा हो चुकी है। अब अन्य विभागों से भी विचार विमर्श की प्रक्रिया शुरू की गई है। गृह व सार्वजनिक उद्यम विभागों के साथ अलग से विशेष बैठकें होंगी। इसके अलावा विभिन्न निगमों के कर्मचारियों की स्थिति को लेकर समिति अलग से सुझाव देगी। इसलिए निगमों के साथ विशेष बैठकों की तैयारी है। समिति यह काम भी दीपावली से पहले पूरे कर लेना चाहती है, ताकि दीपावली के बाद प्राथमिक रिपोर्ट सरकार को सौंपी जा सके।