लखनऊ : सूबे में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें विकास का मार्ग रोक सकती हैं। इनके क्रियान्वयन से कर्मचारियों पर खर्च बजट के 58 फीसद से बढ़कर 72 फीसद होने और विकास कार्यो के मद में 38 हजार करोड़ रुपये की कमी पड़ने की आशंका है। वित्त विभाग ने आर्थिक उपाय न करने की स्थिति में गंभीर वित्तीय संकट की आशंका जतायी है।
केंद्र सरकार द्वारा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें स्वीकार किये जाने के बाद प्रदेश सरकार ने भी इन्हें स्वीकार करने के साथ सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी गोपबंधु पटनायक की अध्यक्षता में समीक्षा समिति गठित की है। अब वित्त विभाग ने समीक्षा समिति के समक्ष सूबे की वित्तीय स्थिति का खाका पेश किया है। इसके अनुसार वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्रदेश की कुल राजस्व प्राप्तियां 3.09 लाख करोड़ रुपये रही हैं। इसमें से कर्मचारियों पर 1.8 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। सिर्फ वेतन के मद में 80 हजार करोड़ रुपये खर्च किये गए। पेंशन, स्वास्थ्य, महंगाई व यात्र भत्ता सहित अन्य मदों में खर्च एक लाख करोड़ रुपये के आसपास है।
सातवें वेतन आयोग की संभावित सिफारिशों का आकलन कर इस खर्च में 54 हजार करोड़ रुपये खर्च बढ़ने की उम्मीद जताई गयी है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में कुल राजस्व प्राप्तियां 3.25 लाख करोड़ रुपये पहुंचने की उम्मीद है। इसमें से 72 फीसद राशि यानि 2.34 लाख करोड़ रुपये कर्मचारियों पर खर्च हो जाएंगे। राज्य के सुनिश्चित खर्चे कुल राजस्व संकलन के 58 फीसद से बढ़कर 72 फीसद हो जाने के कारण विकास कार्यो को राज्य का अंशदान अत्यधिक सिकुड़ जाएगा। वित्तीय वर्ष 2016-17 में विकास कार्यो के लिए 1.29 लाख करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गयी थी। 2017-18 में विकास के लिए उपलब्ध राशि घटकर 91 हजार करोड़ रुपये रह जाएगी।
संसाधनों में वृद्धि को जरूरी करार देकर अतिरिक्त नियोजन की प्रक्रिया शुरू करने का सुझाव दिया गया है। अनुत्पादक खर्चो को कम करने के लिए कठोर आर्थिक फैसले लेने की जरूरत भी बताई गयी है। समिति के अध्यक्ष गोपबंधु पटनायक ने कहा कि समिति वित्त विभाग द्वारा प्रस्तुत तथ्यों पर विचार कर रही है।