प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को हाईकोर्ट की ओर से बड़ा झटका लगा है। अब राज्य सरकार ही निजी मेडिकल कॉलेजों की काउंसिलिंग करायेगी। आज हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि निजी मेडिकल कॉलेज खुद अपनी काउंसिलिंग नहीं कर सकेंगे। राज्य सरकार का काउंसिलिंग का फैसला एकदम सही है।
साथ ही यह भी कहा कि
* पहली काउंसलिंग दुबारा करवाई जाए.
* सरकार ही करे सब्सिडी की व्यवस्था, शेष 50% विद्यार्थियों पर इसका बोझ डालना ठीक नहीं
इसके अलावा हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि अल्पसंख्यक कॉलेज केवल 50% ही काउंसिलिंग कर सकेंगे।
कोर्ट ने सरकार से पूछा, गरीब छात्रों के लिए सब्सिडी वाली छूट पर क्या व्यवस्था है
As you already know that :
प्रदेश सरकार ने निजी कालेजों की काउंसिलिंग भी साथ-साथ कराने का फैसला लिया था, किन्तु शुल्क को लेकर मामला फंसा था। इस पर सरकार ने काउंसिलिंग शुरू होने से एक दिन पहले निजी मेडिकल व डेंटल कालेजों की आधी सीटें नीट काउंसिलिंग के माध्यम से सरकारी फीस पर भरने का फैसला लिया था।
इसके बाद,
36 हजार सालाना फीस पर अखिलेश सरकार के खिलाफ कोर्ट गये प्राइवेट मेडिकल कॉलेज
प्रदेश के 24 निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की 3100 व 23 निजी डेंटल कालेजों में बीडीएस की 2300 सीटें हैं। इनमें से 1550 एमबीबीएस व 1150 बीडीएस सीटों के लिए शासन ने 36 हजार रुपये वार्षिक शुल्क निर्धारित किया था। निजी क्षेत्र में एमबीबीएस की 1550 सीटों के लिए कालेजवार 17 लाख से 21 लाख रुपये के बीच और 1150 बीडीएस सीटों के लिए तीन लाख से छह लाख के बीच शुल्क निर्धारित कर दिया गया है।
लेकिन जब छात्र इन कालेजों में पहुंचे तो वहां प्रवेश देने से इन्कार कर दिया गया। साथ ही निजी कालेजों ने समानांतर काउंसिलिंग भी शुरू करा दी। इस पर जिलाधिकारियों के माध्यम से छापे डलवाकर शासन ने रोक लगायी। इस संबंध में यूपी अनएडेड मेडिकल कालेज एसोसिएशन के अध्यक्ष देवमूर्ति का कहना है कि एसोसिएशन ने आधे विद्यार्थियों पर बोझ बढ़ने का तर्क देकर अदालत से गुहार की है।
दरअसल एक ही परीक्षा से सफल होकर कुछ विद्यार्थी 36 हजार शुल्क दें और एक-दो नंबर से पीछे रह गए विद्यार्थी उनका खर्च उठाते हुए दोगुना यानी 21 लाख रुपये तक शुल्क दें, इस बिन्दु का विरोध हुआ था।
पहुंचने वाले विद्यार्थियों की रिपोर्टिग तो सभी कालेजों ने स्वीकार कर ली थी किन्तु प्रवेश हाईकोर्ट के फैसले के बाद ही होगा यह कहा था।
इस संबंध में चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी का कहना है कि विद्यार्थी नॉन सब्सिडाइज्ड सीटों पर भी प्रवेश ले रहे हैं।
Main points of ORDER by UP Highcourt
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(i) Subject to what has been held hereinabove, the impugned orders prescribing a Centralized Counselling for all institutions for admission to MBBS/BDS medical courses in the State based on NEET 2016, do not suffer from any error.
(ii)Minority institutions shall be allowed to admit the students of their community based on CentralizedCounselling held by the State on the basis of NEET 2016, to the extent permissible, but, without deviating from the merit of such students as reflected in the NEET list 2016, so as to sub-serve their minority status under Article 30(1) of the Constitution of India.
(iii) Clause 1 and 2 of the order dated 02.09.2016 shall not be given effect in their present form, however, considering the laudable object behind it, which the State wants to achieve in discharge of its constitutional obligation, if it chooses to prescribe subsidized seats for the poor it may do so, but, subject to following conditions:
(a) it should fund the subsidy itself unless it is able to devise any other legally and constitutionally permissible means of doing so;
(b) in such an eventuality, it shall ensure that poor students are admitted against subsidized seats without compromising merit i.e. only when such students are within the zone of 0 merit, in the normal course, for exercising his choice during counselling as per NEET list 2016 and not otherwise;
(c) reservation on the basis of residence for the purposes of subsidized seats, if the occasion so arises, shall be restricted to 50% of the seats excluding the All India Quota seats but including the seats in Government institutions and the number/percentage of such seats reserved in private institutions shall be re-fixed accordingly.; The State may if it chooses reformulate its policy as aforesaid. If not, then clause 1 and 2 of the order dated 02.09.2016 shall be treated as inoperative.
(iv)As we have held clause 1 and 2 of the order of the State dated 02.09.2016 to be unsustainable in its present form and as they provide the basic principle and formula of fee fixation, for seats in private institutions, therefore, unless the State reformulates its policy as aforesaid, the orders passed by the fee Committee based thereon, in respect of individual institutions can also not be sustained nor given effect, and are accordingly quashed, therefore, subject to the above, the committee shall refix the fee chargeable by such institutions, accordingly. It is made clear that we have not considered the other grounds of challenge to the decision of fee committee raised in separate writ petitions by individual petitioners and all such pleas shall be open to the parties, if the occasion so arises.
(v)As a consequence of the above Ist round of counselling, which has not yet been finalized, is required to be held again. It is therefore provided that the same shall be done with expedition and the admission process shall be completed, including the exercise/steps, if any, referred at point no. (iii) hereinabove, with the same expedition, keeping in mind the time schedule in regulation 7(6AA) of the Regulations, 1997 but no later than 25.09.2016.
साभार डॉक्टर अमित गुप्ता