लोकसभा के चुनाव हों या विधानसभा के चुनाव, चुनावी साल में कोई भी सरकार कर्मचारियों और शिक्षकों की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहती है। यही वजह है कि कर्मचारी-शिक्षक संगठन हर चुनाव से पहले दबाव की रणनीति अपनाते हैं। हड़ताल, धरना-प्रदर्शन आंदोलन सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति का ही हिस्सा हैं। जिससे उनको कुछ न कुछ हासिल हो जाए। खास बात यह है कि जैसे ही चुनाव घोषित हो जाएंगे, यह सब हड़ताल, धरना-प्रदर्शन आंदोलन स्वत: ही शांत हो जाएंगे। क्योंकि केंद्रीय चुनाव आयोग की आदर्श चुनाव संहिता लागू हो जाने से सरकार इनको न कुछ दे पाएगी और न ही घोषणा कर पाएगी। इसीलिए कर्मचारी और शिक्षक संगठनों का विधानसभा चुनाव से पहले यह रुख है कि चुनाव घोषित होने से पहले अपनी मांगों में से कुछ को तो मनवा ही लिया जाए।
सरकारें जानती हैं कि प्रदेश में 22 लाख कर्मचारी-शिक्षकों की नाराजगी मोल लेना ठीक नहीं होगा, इसलिए वह हर संभव कोशिश करती हैं कि कर्मचारी-शिक्षक नाराज न हों। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि चुनाव आसपास नहीं होने के कारण पांचवां वेतनमान पाने के लिए कर्मचारियों को लंबा संघर्ष करना पड़ा था, लेकिन छठवां वेतन बिना किसी संघर्ष के ही बसपा सरकार ने केंद्र के नोटिफिकेशन के बाद तत्काल देना घोषित कर दिया था। यह बात दीगर है कि उसकी घोषणा का लाभ बसपा को नहीं मिल पाया। लेकिन उसने केवल कर्मचारी नाराज न हो जाएं, केवल इसीलिए छठा वेतनमान दे दिया था। ठीक वही स्थिति सपा सरकार के सामने हैं। विधानसभा चुनाव सामने हैं, इसीलिए सरकार नहीं चाहेगी कि कर्मचारी वर्ग नाराज हो जाए। इसीलिए सपा सरकार के मुखिया अखिलेश यादव केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन से पहले ही सातवां वेतन देने के लिए कैबिनेट से कमेटी गठित करने की मंजूरी करा लिए। अब कमेटी का अध्यक्ष भी रिटायर आईएएस अधिकारी जी.पटनायक को बना दिया गया है।