लोगों को पेंशन के लिए प्रेरित करना अच्छा है, पर इसके लिए ईपीएफ की पेंशन योजना को सुधारा जा सकता है, जिसमें पेंशन राशि फिलहाल बहुत कम है।
कर्मचारी
भविष्य निधि (ईपीएफ) की निकासी के एक हिस्से पर कर लगाने के बजट प्रावधान
के तीखे विरोध को देखकर सरकार ने इसके 60 फीसदी हिस्से के ब्याज पर आगामी
वित्त वर्ष से टैक्स लगाने की बात कही है, लेकिन यह भी उतना ही अनुचित
होगा। यही नहीं कि बजट का यह प्रावधान दोहरे कराधान को बढ़ावा देने वाला
होगा; यानी नौकरीपेशा वर्ग आय पर तो कर चुकाता ही है, उसे बचत पर भी कर
चुकाना होगा, बल्कि यह इसका भी सबूत है कि कर दायरे को व्यापक करने के बजाय
सरकार को वह नौकरीपेशा वर्ग ही सबसे आसान शिकार लगता है, जिसके वेतन-भत्ते
छिपे हुए नहीं होते। जबकि कारोबारियों और प्रोफेशनलों का एक बड़ा हिस्सा
अब भी कर दायरे से या तो बाहर है या वह आय के अनुरूप कर नहीं चुकाता।
अमीरों की संख्या बढ़ रही है, पर कर दायरा उसके अनुरूप नहीं बढ़ रहा, तो
साफ है कि नौकरीपेशा वर्ग को छोड़कर दूसरे पेशे से जुड़े लोगों को कर दायरे
में लाने की गंभीर कोशिश नहीं हो रही। सरकार का तर्क है कि बजट में यह
प्रावधान वह अधिक बीमा और पेंशन वाले समाज का सृजन करने के लिए लाई है।
यानी ईपीएफ की 60 फीसदी राशि पेंशन स्कीम में निवेश कर ब्याज पर लगने वाले
टैक्स की कटौती से बचा जा सकता है। पर सरकार कैसे तय कर सकती है कि रिटायर
होते वक्त कोई कितनी राशि कहां निवेश करेगा? यहां साफ है कि सरकार ने यह
कदम एनपीएस (नेशनल पेंशन सिस्टम) में निवेश बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया
है। सरकार का कहना है कि यह प्रावधान ईपीएफ के करीब तीन करोड़ गरीब
अंशदाताओं के लिए नहीं, बल्कि निजी क्षेत्र के ऊंचे वेतन वाले करीब सत्तर
लाख अंशदाताओं को पेंशन स्कीम में प्रेरित करने के लिए है। लेकिन यह सरकार
की आधी-अधूरी तैयारी का ही सूचक है। लोगों को पेंशन के लिए प्रेरित करना
अच्छा है, पर इसके लिए ईपीएफ की पेंशन योजना को सुधारा जा सकता है, जिसमें
पेंशन राशि बहुत कम है। इस पूरे प्रकरण से ऐसा लगता है कि यह प्रावधान लाने
से पहले सरकार ने संबंधित मंत्रालयों और ईपीएफ तथा एनपीएस के सदस्यों के
साथ समुचित विमर्श नहीं किया। पर अब भी देर नहीं हुई है, नए प्रावधान को
सरकार को वापस लेना चाहिए।