.📌 केंद्र-राज्य कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने बैठक में आंदोलन का किया फैसला
📌 कहा- सिर्फ अफसरों की वेतनवृद्धि का रखा गया खयाल कर्मचारी रहे खाली हाथ
लखनऊ। सातवें केंद्रीय वेतन आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एके माथुर की सिफारिशें केंद्र व राज्य के कर्मचारियों के गले नहीं उतर रही हैं। उनका कहना है कि इसमें सिर्फ उच्च वेतन पाने वाले अफसरों का खयाल रखा गया है। बढ़ती महंगाई को देखते हुए कर्मचारियों के हिस्से कुछ भी नहीं आएगा। केंद्र-राज्य कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति की बैठक में इन सिफारिशों के खिलाफ 27 नवंबर को पूरे प्रदेश में काला दिवस मनाने का निर्णय लिया गया।
राजधानी में राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के कार्यालय में हुई बैठक के बाद समिति के संयोजक आरके पाण्डेय ने बताया कि सातवें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशें कर्मचारी विरोधी हैं। 23.50 प्रतिशत वेतन वृद्धि की मीडिया में आई खबरें भ्रामक हैं। अगर ये सिफारिशें लागू होती हैं तो कर्मचारियों को महज 555 रुपये से लेकर 3085 रुपये का ही फायदा होगा। हमारी मांग थी कि पब्लिक सेक्टर यूनिट्स (पीएसयू) और बैंकों की तरह हर पांच साल पर वेतन की समीक्षा की जाए, मगर सातवें वेतन आयोग ने इस पर कोई विचार नहीं किया। उल्टे कई भत्ते खत्म करने की सिफारिश कर डाली। इतना ही नहीं, 20 साल तक प्रमोशन न पाने वाले कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने की सिफारिश भी की गई हैं।
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी ने कहा कि भविष्य में सातवें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशें ही राज्य सरकार स्वीकार करेगी, इसलिए केंद्रीय कर्मियों की लड़ाई में राज्य कर्मी भी पूरी ताकत से शामिल होंगे। संयुक्त संघर्ष समिति के नेताओं ने बताया कि इन सिफारिशों के खिलाफ 27 नवंबर को काला दिवस मनाया जाएगा। केन्द्र-राज्य कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के घटक संगठनों की बैठक में जेपी सिंह, वीरेंद्र तिवारी, शिवबरन यादव, अतुल मिश्रा, अविनाश श्रीवास्तव, सतीश पांडेय, अमरनाथ यादव, रामराज दुबे मौजूद रहे।
कर्मचारी संगठनों की आपत्तियां
👉 कर्मचारियों की वेतन वृद्धि महज 3.48-6.22%
👉 एनडीए सरकार पर वादा पूरा न करने का आरोप
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि छठे वेतन आयोग में जिन कर्मचारियों की एंट्री पे (मूल वेतन और ग्रेड पे) 7000 रुपये है, उन्हें सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने पर महज 555 रुपये यानी 3.48 प्रतिशत का फायदा होगा। इसी तरह, 13500 रुपये एंट्री पे वालों को 6.64 प्रतिशत व 21000 एंट्री पे वालों को 6.22 प्रतिशत का फायदा होगा। वहीं, 80 हजार रुपये एंट्री पे वालों को 35620 रुपये प्रतिमाह यानी 21.07 प्रतिशत लाभ की सिफारिश की गई है।
केंद्र-राज्य कर्मचारी संयुक्त संघर्ष के संयोजक आरके पांडेय ने कहा कि लोकसभा चुनाव से पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लिखित में आश्वासन दिया था कि एनडीए की सरकार बनने पर पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल की जाएगी, मगर सातवें वेतन आयोग ने इस पर कोई विचार नहीं किया।
• पीएसयू व बैंकों की तर्ज पर हर 5 वर्ष पर वेतन समीक्षा की मांग नहीं मानी। इसके लिए 10 वर्ष तक करना होगा इंतजार।
• केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आवश्यक वस्तुओं के मूल्य सूचकांक के आधार पर कर्मचारी पक्ष ने 26000 रुपये प्रति माह न्यूनतम वेतन मांगा था, लेकिन आयोग ने महज 18000 रुपये प्रति माह निर्धारित किया।
• कर्मचारियों की मांग थी कि न्यूनतम और अधिकतम वेतन का अनुपात 1:8 से ज्यादा न हो, लेकिन इसे 1:13.8 रखने की सिफारिश की गई।
• सातवें केंद्रीय वेतन आयोग द्वारा 23.50 प्रतिशत की वेतनवृद्धि की घोषणा छलावा है। 1-1-2016 को गैर-राजपत्रित सरकारी कर्मचारियों के हाथ में आने वाले वास्तविक वेतन में महज 3.5-7 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी।
• वार्षिक वेतन वृद्धि दर 5 प्रतिशत रखने की मांग की गई थी, मगर इसे यथावत 3 प्रतिशत ही रखा गया।
• एमएसीपी स्कीम के तहत प्रोन्नति में बेंच मार्क को उत्तम से अति उत्तम करने की सिफारिश कर्मचारियों को स्वीकार नहीं।
• कर्मचारी को उसकी कार्य दक्षता के आधार पर 20 वर्ष में पदोन्नति या एमएसीपी नहीं मिलने पर वेतनवृद्धि रोकने व स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के विकल्प की सिफारिश को भी अनुचित बताया।
• मकान किराया भत्ता के लिए एक्स, वाई और जेड श्रेणी के नगरों के लिए मौजूदा दर क्रमश: 30, 20 और 10 प्रतिशत को घटाकर 24, 16 और 8 प्रतिशत करने की सिफारिश किया जाना।
• पेंशनर्स के लिए मौजूदा स्थायी चिकित्सा भत्ता 500 रुपये में कोई वृद्धि नहीं किया जाना।
• ब्याज मुक्त और ब्याज युक्त सभी अग्रिम (भवन निर्माण और कम्प्युटर एडवांस को छोड़कर) समाप्त करने की सिफारिश
• चाइल्ड केयर लीव के दूसरे वर्ष सरकारी कर्मचारी को 20 प्रतिशत कटौती के साथ वेतन भुगतान की सिफारिश।
• परिवार नियोजन भत्ता, कैश हैंडलिंग भत्ता, ब्रेक डाउन भत्ता, नाइट पेट्रोलिंग भत्ता, धुलाई भत्ता आदि समाप्त किये जाने की भी सिफारिश।
• 1-1-2004 के बाद नियुक्त सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने की मांग को स्वीकार न कर न्यू-पेंशन स्कीम को यथावत रखना।
• कर्मचारी पक्ष द्वारा रिक्त पदों को भरे जाने व नए कार्यों के लिए नियुक्तियों की मांग को नजरअंदाज कर सातवें वेतन आयोग द्वारा कोई सिफारिश न किया जाना।