नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि सेवा से
इस्तीफा देने के बाद भी कर्मचारी पूरी पेंशन और भत्ते पाने का हकदार है। यह
फैसला देते हुए कोर्ट ने एलआईसी के एक अधिकारी को इस्तीफा देने के कई
वर्ष बाद पेंशन देने का आदेश दिया है।
जस्टिस विक्रमजीत सेन और जस्टिस एएम सप्रे की पीठ ने यह आदेश मंगलवार को एक फैसले में दिया। कोर्ट ने पेंशन दावा दायर करने में उसकी ओर से की गई देरी को माफ कर दिया, लेकिन कहा कि उसे सेवा छोड़ने के दिन से नहीं बल्कि, 2013 से पूरी पेंशन अदा की जाए।
कोर्ट ने कहा कि यदि कर्मचारी ने 20 वर्ष या उससे ज्यादा की सेवा की है, तो नियोक्ता को उसे पेंशन देनी ही होगी, चाहे इस बारे में नियम विपरीत ही क्यों न हों। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कर्मचारी को सेवा से निकाला नहीं गया था। उसने खुद इस्तीफा दिया था। 23 वर्ष की लंबी सेवा के बाद दिए गए इस्तीफे को स्वैच्छिक रिटायरमेंट माना जाना चाहिए। यदि उसे सेवा से निकाला जाता तो उसका मामला अलग होता और उसके पेंशन भत्ते जब्त किए जा सकते थे, लेकिन यह मामला बर्खास्तगी का नहीं है। इब्राहिम अमीन ने 23 साल सेवा करने के बाद 1991 में खराब स्वास्थ्य के कारण एलआईसी में डिप्टी जरनल मैनेजर पद से इस्तीफा दे दिया था। उसने तीन माह की नोटिस देने की अवधि से छूट मांगी, जिसे कॉरपोरेशन ने स्वीकार कर लिया और उसे इस्तीफा देने की अनुमति दे दी। इस बीच केंद्र सरकार ने 1995 में पेंशन नियम घोषित किए, लेकिन कहा कि यह नियम 1993 से लागू होंगे। यह पता चलने पर अमीन ने पत्र लिखा और पेंशन की मांग की, लेकिन कॉरपोरेशन ने कहा कि उसका केस पेंशन नियमों में कवर नहीं होता, क्योंकि उसने सेवा से इस्तीफा दिया है। यह इस्तीफा भी 1991 में हुआ था तब पेंशन के नियम अस्तित्व में नहीं थे। इसके बाद अमीन ने वर्ष 2012 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन हाईकोर्ट की एकल पीठ ने याचिका दायर करने में हुई देरी के कारण केस खारिज कर दिया। इसके बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भी इसी आधार पर केस निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अमीन ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की।
जस्टिस विक्रमजीत सेन और जस्टिस एएम सप्रे की पीठ ने यह आदेश मंगलवार को एक फैसले में दिया। कोर्ट ने पेंशन दावा दायर करने में उसकी ओर से की गई देरी को माफ कर दिया, लेकिन कहा कि उसे सेवा छोड़ने के दिन से नहीं बल्कि, 2013 से पूरी पेंशन अदा की जाए।
कोर्ट ने कहा कि यदि कर्मचारी ने 20 वर्ष या उससे ज्यादा की सेवा की है, तो नियोक्ता को उसे पेंशन देनी ही होगी, चाहे इस बारे में नियम विपरीत ही क्यों न हों। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कर्मचारी को सेवा से निकाला नहीं गया था। उसने खुद इस्तीफा दिया था। 23 वर्ष की लंबी सेवा के बाद दिए गए इस्तीफे को स्वैच्छिक रिटायरमेंट माना जाना चाहिए। यदि उसे सेवा से निकाला जाता तो उसका मामला अलग होता और उसके पेंशन भत्ते जब्त किए जा सकते थे, लेकिन यह मामला बर्खास्तगी का नहीं है। इब्राहिम अमीन ने 23 साल सेवा करने के बाद 1991 में खराब स्वास्थ्य के कारण एलआईसी में डिप्टी जरनल मैनेजर पद से इस्तीफा दे दिया था। उसने तीन माह की नोटिस देने की अवधि से छूट मांगी, जिसे कॉरपोरेशन ने स्वीकार कर लिया और उसे इस्तीफा देने की अनुमति दे दी। इस बीच केंद्र सरकार ने 1995 में पेंशन नियम घोषित किए, लेकिन कहा कि यह नियम 1993 से लागू होंगे। यह पता चलने पर अमीन ने पत्र लिखा और पेंशन की मांग की, लेकिन कॉरपोरेशन ने कहा कि उसका केस पेंशन नियमों में कवर नहीं होता, क्योंकि उसने सेवा से इस्तीफा दिया है। यह इस्तीफा भी 1991 में हुआ था तब पेंशन के नियम अस्तित्व में नहीं थे। इसके बाद अमीन ने वर्ष 2012 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन हाईकोर्ट की एकल पीठ ने याचिका दायर करने में हुई देरी के कारण केस खारिज कर दिया। इसके बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भी इसी आधार पर केस निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अमीन ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की।