गाजियाबाद नगर निगम के इंजीनियर ही नहीं, पूरे प्रदेश में तमाम ऐसे अधिकारी हैं, जिन पर सत्ता की मेहरबानी की वजह से ट्रांसफर नीति लागू नहीं होती। राजधानी लखनऊ समेत अन्य शहरों के नगर निगम में ये अधिकारी कई साल से कुर्सी पर बैठे हैं और अपना नेक्सेस बनाए हैं। यह बात अलग है कि ट्रांसफर नीति के मुताबिक किसी भी केंद्रीयत सेवा के अधिकारी और कर्मचारी को एक जिले में छह साल से ज्यादा रहने की इजाजत नहीं है। मंडल में यह समय सीमा दस साल की है।
बीते दिनों नगर विकास विभाग ने सभी नगर निगमों और नगर पालिका परिषदों से उनके यहां छह साल की सेवा कर चुके अधिकारियों और कर्मचारियों का ब्योरा मांगा था। ब्योरा जाने के बाद भी सभी के ट्रांसफर नहीं किए गए हैं। लखनऊ में ही छह अधिकारियों की सूचना गई थी, लेकिन ट्रांसफर ऑर्डर केवल चार के ही बने हैं। दो को इस बार भी नगर विकास विभाग में मजबूत सेटिंग की वजह से लखनऊ में ही छोड़ दिया गया। अब एक बार जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 29 अक्टूबर को मुख्य सचिव आलोक रंजन से इस मामले में रिपोर्ट देने का आदेश दिया है तो नगर निगमों और पालिका परिषदों में फिर से खलबली मच गई है।
वाराणसी में 18 तो कानपुर में हैं 13 अधिकारी
वाराणसी नगर निगम में भी 18 कर्मचारियों के सात साल से ज्यादा की मियाद पूरी करने की जानकारी आ रही है। इनमें से अभी तक किसी का ट्रांसफर नहीं किया गया है। सूत्र बताते हैं कि कानपुर नगर निगम में 13 अधिकारी हैं, जो यहां की कुर्सी पर ट्रांसफर नीति के विपरीत जमे हैं। गोरखपुर नगर निगम में 8, मेरठ में 7 और अलीगढ़ में 14 अधिकारियों के सात साल से ज्यादा से इसी जिले में काम करने की जानकारी दी जा रही है।
कर्मचारियों में भी अच्छी खासी संख्या
अधिकारियों के अलावा कर्मचारियों की भी अच्छी खासी संख्या है, जो एक ही जिले में रुके हैं। लखनऊ समेत तमाम शहरों के नगर निगम में ट्रांसफर के बाद भी कर्मचारी काम कर रहे हैं। ट्रांसफर नीति के विपरीत काम कर रहे कर्मचारियों और अधिकारियों की काफी संख्या को देखते हुए फिलहाल बिना सचिव के चल रहे विभाग में खलबली है।