इलाहाबाद।
दीपावली से ठीक पहले नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) के तहत सरकारी ट्रस्ट के
प्रबंधन के लिए 0.01 फीसदी प्रबंधन शुल्क की वसूली के आदेश से कर्मचारियों
को जोर का झटका धीमे से लगा है। देश भर में तकरीबन 28 लाख कर्मचारी इससे
प्रभावित होंगे। कहने को कटौती की रकम बहुत छोटी है लेकिन दायरा इतना बढ़ा
है कि प्रबंधन शुल्क के नाम पर करोड़ों रुपये की वसूली जाएगी। कर्मचारियों
ने इसका विरोध भी शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि यह स्कीम 2005 से लागू
है तो दस साल तक प्रबंधन कैसे हुआ और कर्मचारियों की मेहनत की कमाई से
वसूली का अधिकार सरकार को किसने दिया।
एनपीएस
के तहत किसी कर्मचारी को अगर एक लाख रुपये जमा है तो उसके वेतन से प्रबंधन
शुल्क के नाम पर 10 रुपये की कटौती की जाएगी। हर साल पेंशन खाते में जितनी
रकम बढ़ती जाएगी, उसी अनुपात में प्रबंधन शुल्क की सालाना कटौती राशि में
भी वृद्धि होती जाएगी। ऐसे में कर्मचारियों के पैसे का रखरखाव करने वाले
सरकारी ट्रस्ट का खजाना बढ़ता जाएगा और कर्मचारियों की जेब कटती जाएगी। कर
एवं वित्त सलाहकार डॉ. पवन जायसवाल का कहना है कि इस व्यवस्था से सरकार की
झोली तो भर जाएगी लेकिन कर्मचारियों की झोली में नपी-तुली तनख्वाह आती है।
ऐसे में भविष्य में उनका पेंशन फंड कम हो जाएगा। इस व्यवस्था को लागू करने
से पहले ट्रस्ट को प्रस्ताव बनाकर इस मुद्दे पर आम राय एवं सहमति बनानी
चाहिए थी।
साथ ही पीएफआरडीए को भी मामले
में हस्तक्षेप करना चाहिए, क्योंकि यह व्यवस्था किसी भी रूप में
कर्मचारियों के लिए लाभकारी नहीं है, बल्कि नुकसान पहुंचाएगी। कर्मचारी
शिक्षक समन्वय समिति के संयोजक हनुमान प्रसाद श्रीवास्तव का कहना है कि
कर्मचारियों के मोबाइल में कटौती का मैसेज भेजकर सरकार ने अपनी जिम्मेदारी
पूरी मान ली। एनपीएस के तहत पेंशन फंड के लिए 2005 से कर्मचारियों के वेतन
से कटौती जा रही है। अब तक इसके प्रबंधन का खर्च कौन उठा रहा था। कर्मचारी
इस कटौती का विरोध करेंगे। कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट
इम्पलाइज, यूपी ईस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष कृपा शंकर श्रीवास्तव का कहना है
कि सरकार को प्रशासनिक खर्च का वहन अपने स्नोत से करना चाहिए। कर्मचारियों
से वसूली गलत है। इसका विरोध होगा।