इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुच्छेद 30(1) के
तहत प्राप्त मूल अधिकारों के संरक्षण की आड़ लेकर अल्पसंख्यक शिक्षण
संस्थान के प्रबंधक मनमानी नहीं कर सकते। उन्हें अपने कर्मचारियों के
उत्पीड़न या शोषण का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि यदि वित्तीय
अनियमितता के आरोप में कॉलेज के प्राचार्य को बर्खास्त किया गया हो तो इससे
पहले नियमानुसार विभागीय जांच में आरोप सिद्ध किया जाना जरूरी है। आरोपी
को सुनवाई एवं गवाहों की प्रति परीक्षा का अवसर देना भी जरूरी है। ऐसा न
करना उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम 1921 के चैप्टर-थर्ड के तहत
रेग्यूलेशन 35 व 36 का उल्लंघन है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने इंदर सिंह गांधी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची कॉलेज में प्रवक्ता पद पर कार्यरत था। सीधी भर्ती में उसे प्रधानाचार्य पद पर चयनित किया गया तथा पांच सितंबर 2002 को नियुक्ति दी गई। प्रधानाचार्य को वित्तीय अनियमितता के आरोप में निलंबित कर जांच बैठाई गई। याची ने आरोप पत्र का लिखित जवाब भी दिया। जांच अधिकारी ने उसे सुनवाई व गवाहों की परीक्षा का मौका नहीं दिया। जांच रिपोर्ट नहीं दी। बचाव का मौका दिए बगैर उसे बर्खास्त कर दिया गया जिसे चुनौती दी गई। प्रबंध समिति की तरफ से बहस की गई कि वह अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान है। उसे प्रशासनिक कार्यवाही का अधिकार है जिसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने इंदर सिंह गांधी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची कॉलेज में प्रवक्ता पद पर कार्यरत था। सीधी भर्ती में उसे प्रधानाचार्य पद पर चयनित किया गया तथा पांच सितंबर 2002 को नियुक्ति दी गई। प्रधानाचार्य को वित्तीय अनियमितता के आरोप में निलंबित कर जांच बैठाई गई। याची ने आरोप पत्र का लिखित जवाब भी दिया। जांच अधिकारी ने उसे सुनवाई व गवाहों की परीक्षा का मौका नहीं दिया। जांच रिपोर्ट नहीं दी। बचाव का मौका दिए बगैर उसे बर्खास्त कर दिया गया जिसे चुनौती दी गई। प्रबंध समिति की तरफ से बहस की गई कि वह अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान है। उसे प्रशासनिक कार्यवाही का अधिकार है जिसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
खबर साभार : दैनिक जागरण
प्रबंध समिति को नियमानुसार जांच करने की मिली छूट
प्रधानाचार्य की बर्खास्तगी रद्द
इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुच्छेद 30 (1) के तहत प्राप्त
मूल अधिकारों के संरक्षण की आड़ लेकर अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान के प्रबंधक
अपने कर्मचारियों का उत्पीड़न या शोषण नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा है कि यदि
वित्तीय अनियमितता के आरोप में कॉलेज के प्राचार्य को बर्खास्त किया गया
हो तो इससे पहले नियमानुसार विभागीय जांच में आरोप सिद्ध किया जाना जरूरी
है। साथ ही आरोपी को सुनवाई एवं गवाहों की प्रतिपरीक्षा का अवसर देना भी
जरूरी है। ऐसा न करना उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम 1921 के
चैप्टर तृतीय के रेग्यूलेशन 35 व 36 का उल्लंघन है। कोर्ट ने मनमाने तौर पर
हरजिंदर नगर इंटर कॉलेज कानपुर नगर के प्रधानाचार्य इंदर सिंह गांधी की
बर्खास्तगी आदेश 25 अगस्त 2013 व 5 सितंबर 2013 को रद्द कर दिया है। कोर्ट
ने प्रबंध समिति को नियमानुसार जांच करने की छूट देते हुए याची से सहयोग
करने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति एम.सी. त्रिपाठी ने इंदर सिंह गांधी
की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची कॉलेज में प्रवक्ता पद पर
कार्यरत था। सीधी भर्ती में उसे प्रधानाचार्य पद पर चयनित किया गया तथा 5
सितंबर 2002 को नियुक्ति की गई। प्रधानाचार्य को वित्तीय अनियमितता के आरोप
में निलंबित कर जांच बैठाई गई। याची ने आरोप पत्र का लिखित जवाब भी दिया।
जांच अधिकारी ने उसे सुनवाई व गवाहों की परीक्षा का मौका नहीं दिया। साथ ही
जांच रिपोर्ट नहीं दी। बचाव का मौका दिये बगैर उसे बर्खास्त कर दिया गया
जिसे चुनौती दी गई। प्रबंध समिति की तरफ से बहस की गई कि वह अल्पसंख्यक
शिक्षण संस्थान है उसे प्रशासनिक कार्रवाई का अधिकार है जिसमें हस्तक्षेप
नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस दलील को नहीं माना और कहा कि यदि कर्मचारी
जांच प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेता है तो भी प्रबंध समिति को आरोप साबित
करना होगा साथ ही उसे बचाव का मौका देना होगा।
खबर साभार : डीएनए