- सुप्रीमकोर्ट ने उत्तर प्रदेश से मांगा आदेश पर अनुपालन का ब्योरा
- प्रोन्नति में आरक्षण पर उ.प्र. से जवाब तलब
- दूसरे विभागों में भी हो सकते हैं कई पदावनत
- कैबिनेट के फैसले से बढ़े आसार
- आरक्षण विरोधियों ने किया स्वागत, समर्थकों की आज बैठक
प्रोन्नति में आरक्षण के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार
फंसती नजर आ रही है। सुप्रीमकोर्ट ने प्रदेश सरकार से प्रोन्नति में
आरक्षण को गैर कानूनी ठहराने के अपने आदेश का अनुपालन ब्योरा मांग लिया है।
कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव आलोक रंजन को आदेश दिया कि वे हलफनामा
दाखिल कर आदेश के अनुपालन के आंकड़े और ब्योरा पेश करें। कोर्ट का यह आदेश
प्रदेश सरकार की परेशानी का सबब बन सकता है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित
जनजाति(एससी एसटी) आरक्षण एक संवेदनशील मुद्दा है। राज्य सरकार उसे बेवजह
हवा नहीं देना चाहती इसीलिए वह आरक्षण का लाभ लेकर प्रोन्नत हुए
कर्मचारियों को पदावनत करने का मसला फिलहाल टाले हुए है, लेकिन कोर्ट के इस
आदेश के बाद उसे की गई कार्रवाई का ब्योरा देना होगा।
मंगलवार को ये निर्देश न्यायमूर्ति दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि कोर्ट के आदेश को तीन साल से ज्यादा समय बीत चुका है अभी तक आदेश पर पूरी तरह अमल क्यों नहीं हुआ। मुख्य सचिव हलफनामा दाखिल कर आदेश के अनुपालन का ब्योरा और आंकड़े पेश करें। कोर्ट ने कहा कि हलफनामे के लिए मुख्य सचिव स्वयं जिम्मेदार होंगे। इसके साथ ही कोर्ट ने मामले सुनवाई के लिए 20 अगस्त की तिथि तय कर दी। सुप्रीमकोर्ट ने 27 अप्रैल 2012 को उत्तर प्रदेश में नौकरियों मे आरक्षण का प्रावधान करने वाला कानून असंवैधानिक घोषित कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जो भी प्रोन्नतियां आरक्षण कानून की (धारा 3 (7) व रूल 8 ए) का लाभ दिए बगैर की गयी हैं उन्हें इस फैसले के बाद छेड़ा ना जाए। यानि इसका मतलब था कि जो प्रोन्नतियां बिना आरक्षण का लाभ दिये की गयी है उन्हें तो न छेड़ा जाए लेकिन जिन प्रोन्नतियों में आरक्षण का लाभ दिया गया है उन्हें वापस पूर्व स्थिति में लाया जाए।
मंगलवार को ये निर्देश न्यायमूर्ति दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि कोर्ट के आदेश को तीन साल से ज्यादा समय बीत चुका है अभी तक आदेश पर पूरी तरह अमल क्यों नहीं हुआ। मुख्य सचिव हलफनामा दाखिल कर आदेश के अनुपालन का ब्योरा और आंकड़े पेश करें। कोर्ट ने कहा कि हलफनामे के लिए मुख्य सचिव स्वयं जिम्मेदार होंगे। इसके साथ ही कोर्ट ने मामले सुनवाई के लिए 20 अगस्त की तिथि तय कर दी। सुप्रीमकोर्ट ने 27 अप्रैल 2012 को उत्तर प्रदेश में नौकरियों मे आरक्षण का प्रावधान करने वाला कानून असंवैधानिक घोषित कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जो भी प्रोन्नतियां आरक्षण कानून की (धारा 3 (7) व रूल 8 ए) का लाभ दिए बगैर की गयी हैं उन्हें इस फैसले के बाद छेड़ा ना जाए। यानि इसका मतलब था कि जो प्रोन्नतियां बिना आरक्षण का लाभ दिये की गयी है उन्हें तो न छेड़ा जाए लेकिन जिन प्रोन्नतियों में आरक्षण का लाभ दिया गया है उन्हें वापस पूर्व स्थिति में लाया जाए।
जब राज्य सरकार ने आरक्षण का लाभ देकर की
गयी प्रोन्नतियों को वापस पूर्व स्थिति में नहीं किया। तो याचिकाकर्ता अमर
कुमार व अन्य ने राज्य सरकार के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में अवमानना याचिका
दाखिल की। आज अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील
राजीव धवन और कुमार परिमल ने कहा कि सरकार ने अभी तक आदेश लागू नहीं किया
है। आरक्षण का लाभ लेकर प्रोन्नत हुए कर्मचारियों को पदावनत नहीं किया गया
है। जबकि फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका और संशोधन अर्जी पहले ही खारिज
हो चुकी हैं। तभी राज्य सरकार के वकील रवि प्रकाश मेहरोत्र ने कहा कि सरकार
ने पदावनति के बारे में नीतिगत फैसला ले लिया है। सरकार की दलील पर कोर्ट
ने कहा कि अभी तक ब्योरा कोर्ट में क्यो नहीं पेश किया गया। क्या है मामला :
मायावती सरकार ने वर्ष 2007 में यूपी गवर्नमेंट सर्वेंट सीनियरिटी थर्ड
एमेंडमेंट रूल में धारा 8 (क) जोड़ी थी। इसमें एससी एसटी को प्रोन्नति में
आरक्षण और प्रोन्नति के साथ परिणामी ज्येष्ठता का प्रावधान किया गया था।