👉 अफसरों की मनमानी से बढ़ रहा मुकदमों का बोझ : हाईकोर्ट
👉 नियम विरुद्ध आदेश जारी करने से हाईकोर्ट में याचिकाओं की भरमार
👉 एसपी ललितपुर ने जीआरपी जवानों से छीना क्वार्टर
अदालतों पर बढ़ रहे मुकदमों के बोझ के लिए बहुत हद तक सूबे के अफसर जिम्मेदार हैं। उनके मनमाने और नियम विरुद्ध आदेशों की बदौलत पीड़ित व्यक्ति न्यायालय की शरण में जाने को बाध्य होता है। अफसरों को न तो कानून की कोई जानकारी है और न ही नियमों की परवाह। हाईकोर्ट ने दो ऐसे ही मामलों दाखिल दर्जनों याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। अदालत का कहना था कि तमाम कानूनों पर हाईकोर्ट द्वारा स्थिति स्पष्ट किए जाने के बाद भी अधिकारी मनमाने आदेश पारित कर रहे हैं। ललितपुर और बस्ती के पुलिस अधीक्षकों द्वारा की गई मनमानी कार्रवाई पर अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए दोनों से जवाब तलब किया है।
कोर्ट ने एसपी ललितपुर से सिविल पुलिस से जीआरपी में स्थानांतरित किए गए जवानों से सरकारी क्वार्टर खाली कराने के बाबत जवाब-तलब किया है। उनसे पूछा है कि हाईकोर्ट की पूर्णपीठ ओम प्रकाश सिंह बनाम राज्य के मुकदमे में यह स्पष्ट कर चुकी है कि सिविल पुलिस और राजकीय रेलवे पुलिस एक ही शाखा के बल हैं। एक से दूसरे में तबादले से उनकी स्थिति नहीं बदलती है। इसके बावजूद एसपी ललितपुर ने सिविल पुलिस से जीआरपी में भेजे गए 624 आरक्षियों से सरकारी आवास खाली कराने का आदेश जारी कर दिया जबकि इन सभी का तबादला जीआरपी ललितपुर में ही हुआ है।
जुल्फिकार हुसैन व अन्य ने एसपी के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनके वकील विजय गौतम ने कहा कि याचीगण को रिजर्व पुलिस लाइन में क्वार्टर दिए गए हैं। उनका स्थानांतरण भी ललितपुर में ही किया गया है। याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल ने एसपी के आदेश पर रोक लगाते हुए जवाब-तलब किया है। मामले की सुनवाई 16 जुलाई को होगी।
बिना जांच किया सिपाहियों को निलंबित
हाईकोर्ट ने बिना प्रारंभिक जांच किए सिपाहियों को निलंबित करने के मामले में कड़ी टिप्पणी करते हुए एसपी बस्ती से जवाब तलब किया है। कांस्टेबल महेंद्र प्रसाद पांडेय और दो अन्य आरक्षियों को बिना प्रारंभिक जांच के निलंबित कर दिया गया। दोनों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर निलंबन आदेश को चुनौती दी। न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सुप्रीमकोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि बिना प्रारंभिक जांच किए निलंबन नहीं किया जा सकता है। अधिकारियोें को इसकी जानकारी होनी चाहिए। सरकार के पास वकीलों की पूरी फौज मौजूद है जिनसे विधिक सलाह ली जा सकती है। अधिकारियों की ऐसी करतूतों से हाईकोर्ट में याचिकाओें की भरमार हो गई है।