- शिक्षक की विधवा को 10 साल की देरी पर 12 फीसद ब्याज का निर्देश
- सेवानिवृत्ति परिलाभ में देरी पर ब्याज पाने का अधिकार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि सेवानिवृत्ति परिलाभों के भुगतान में देरी होती है तो कर्मचारी को ब्याज पाने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों का वैधानिक दायित्व है कि वे सेवानिवृत्ति से छह माह पहले ही परिलाभों के समयानुसार भुगतान की कार्यवाही शुरू कर लें। कोर्ट ने समय से कार्यवाही किए जाने के बावजूद 10 वर्ष तक परिलाभों का भुगतान न करने पर उपनिदेशक शिक्षा चतुर्थ मंडल, इलाहाबाद को चार माह के भीतर याची को 12 फीसद ब्याज का भुगतान करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों को शिक्षक की विधवा का सम्मान करना चाहिए तथा बिना देरी के भुगतान करना चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल ने तिलक इंटरमीडिएट कालेज, प्रतापगढ़ के अध्यापक रहे राम बिहारी मिश्र की विधवा तारावती मिश्र की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता संतोष कुमार त्रिपाठी ने बहस की। याचिका के अनुसार याची के पति की नियुक्ति तिलक इंटरमीडिएट कालेज प्रतापगढ़ में एक जून 62 को हुई थी जहां उन्होंने 31 अगस्त 79 तक काम किया।
याची के पति विद्यालय में सहायक अध्यापक थे। 1979 के बाद उनका तबादला मान्धाता इंटरमीडिएट कालेज, प्रतापगढ़ कर दिया गया जहां से 30 जून 93 में सेवानिवृत्त हुए। छह माह पहले ही सेवानिवृत्ति परिलाभों के भुगतान के सारे पेपर भेज दिए गए। याची के पति की 12 जनवरी 97 को मृत्यु हो गई किंतु भुगतान न हो सका। इसमें दस साल का विलंब हुआ। देरी के लिए विभाग ने दो हजार रुपये का भुगतान भी किया किंतु याची ने 10 साल की देरी के लिए ब्याज मांगा जिसे अस्वीकार करने पर यह याचिका दाखिल की गई। समय दिए जाने के बावजूद शिक्षा विभाग ने जवाबी हलफनामा नहीं दाखिल किया। कोर्ट ने याचिका में उठे बिंदुओं पर ब्याज भुगतान का आदेश दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों को शिक्षक की विधवा का सम्मान करना चाहिए तथा बिना देरी के भुगतान करना चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल ने तिलक इंटरमीडिएट कालेज, प्रतापगढ़ के अध्यापक रहे राम बिहारी मिश्र की विधवा तारावती मिश्र की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता संतोष कुमार त्रिपाठी ने बहस की। याचिका के अनुसार याची के पति की नियुक्ति तिलक इंटरमीडिएट कालेज प्रतापगढ़ में एक जून 62 को हुई थी जहां उन्होंने 31 अगस्त 79 तक काम किया।
याची के पति विद्यालय में सहायक अध्यापक थे। 1979 के बाद उनका तबादला मान्धाता इंटरमीडिएट कालेज, प्रतापगढ़ कर दिया गया जहां से 30 जून 93 में सेवानिवृत्त हुए। छह माह पहले ही सेवानिवृत्ति परिलाभों के भुगतान के सारे पेपर भेज दिए गए। याची के पति की 12 जनवरी 97 को मृत्यु हो गई किंतु भुगतान न हो सका। इसमें दस साल का विलंब हुआ। देरी के लिए विभाग ने दो हजार रुपये का भुगतान भी किया किंतु याची ने 10 साल की देरी के लिए ब्याज मांगा जिसे अस्वीकार करने पर यह याचिका दाखिल की गई। समय दिए जाने के बावजूद शिक्षा विभाग ने जवाबी हलफनामा नहीं दाखिल किया। कोर्ट ने याचिका में उठे बिंदुओं पर ब्याज भुगतान का आदेश दिया है।