- अपने ही स्टाफ को मुकदमेबाज न बनाएं
प्रदेश सरकार ने प्रशासनिक अधिकारियों को सेवा संबंधी मामलों के निपटारे में ‘न्यायालय को निर्णय करने दो’ वाला रवैया छोड़ने की हिदायत दी है। सरकार ने एक स्पष्ट आदेश जारी कर अफसरों को संदेश दिया है कि कि वे राज्य मुकदमा नीति पर अमल करें और मातहतों को अनावश्यक मुकदमेबाजी के लिए मजबूर न करें।
शासन के अधिकारी बताते हैं कि
तमाम मामले तो ऐसे आते हैं जिनका निर्णय विभागाध्यक्ष के स्तर पर ही हो
जाना चाहिए। वहां कोई मुश्किल हो तो जिलाधिकारी के स्तर पर निपट जाना
चाहिए, मगर ऐसे मामलों में भी कर्मियों को हाईकोर्ट तक जाना पड़ता है।
इसका सबसे खराब पहलू यह है कि सरकारी कर्मी की शिकायत तो अपने विभाग के अधिकारी से होती है, लेकिन वह जब हाईकोर्ट पहुंचता है तो वहां विभागीय मुखिया से लेकर शासन में विभाग के सचिव तक को पार्टी बना देता है। इससे ऐसे मामलों में जिले से शासन तक के अधिकारियों को बेवजह अदालत के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
इसका सबसे खराब पहलू यह है कि सरकारी कर्मी की शिकायत तो अपने विभाग के अधिकारी से होती है, लेकिन वह जब हाईकोर्ट पहुंचता है तो वहां विभागीय मुखिया से लेकर शासन में विभाग के सचिव तक को पार्टी बना देता है। इससे ऐसे मामलों में जिले से शासन तक के अधिकारियों को बेवजह अदालत के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
न्याय विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी
बताते हैं कि शासन ने इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर अफसरों को राज्य
मुकदमा नीति की याद दिलाई है। इस नीति में बहुत ही स्पष्ट तरीके से कहा गया
है कि सेवा संबंधी मामलों में कर्मचारियों के पक्ष में सकारात्मक रवैया
अपनाकर निर्णय लें। प्रमुख सचिव न्याय अनिरुद्ध सिंह ने शासन के सभी प्रमुख
सचिवों, सचिवों व विभागाध्यक्षों को इस नीति को ध्यान में रखकर कार्यवाही
के लिए निर्देश दिए हैं।